झारखंड के मुख्यमंत्री सोरेन साहब से सीखना चाहिए-जनांदोलन की साथी की चिट्ठी

जनांदोलन की साथी की चिट्ठी


......महासमुंद, छत्तीसगढ़ के कुछ मजदूर तिरूपति से छत्तीसगढ़ आने में फस गए थे, तिरुपति से आंध्रा बॉर्डर तक पहुँचे, परवतीपुरम स्टेशन पहुचे, इसको लगातार फॉलो कर रही थी ताकि इनकी मदद करी  जा सके, तो एक msg बनाकर डाला गया था, जिसके बाद कई लोग खाने और रोकने की ज़िम्मेदारी लेने को तैयार हो गए थे।
जब कुछ लोग खाने की मदद के लिए वहां पहुचे, तो कोई मजदूर वहां नही दिख रहा था।
फोन बंद हो गया था, काफी देर बाद नंद किशोर जी से बात हो पाई, उन्होंने बताया कि सभी मजदूर को पुलिस लाठी से भगा रही थी, ऐसा ही तिरुपति में हुआ तो वहां से निजी गाड़ी करके आंध्रा बॉर्डर तक पहुचे, किसी के पास इतने पैसे नही थे कि निजी गाड़ी कर सके, तो सबने अपने अपने घर पर फोन करके, इधर उधर जुगाड़ लगाकर 60 हजार रुपये एकाउंट में डलवाये, तब आंध्रा बॉर्डर पहुँच पाए, और जब पार्वतीपुरम पहुचे तो वहां भी पुलिस भगा रही थी, लाठी दिखा रही थी, फिर से खाने और रहने के कोई ठिकाने नही थे, फिर से सबने अपने अपने गाँव फोन करके पैसे मांगे, और फिर से निजी गाड़ी की और गाड़ी वाले ने इस बार 27 हजार रुपये लिए है आंध्रा से छत्तीसगढ़ बॉर्डर तक आने के लिए, जबकि ये जिम्मेदारी पुलिस की और सरकार की थी कि अगर ब्लॉक किया है, तो जहां है वही रुकने का इंतजाम करवा दे, और अगर उसके राज्य भेज रहा है, तो राज्य सरकार या फिर केंद्र सरकार इसकी जिम्मेदारी ले, पर ऐसा नही हो रहा है।


नंद किशोर बता रहे है कि कल खाना खाया था, और पुलिस ने ओडिसा में जांच के लिए सरकारी अस्पताल भी ले गए थे, पर अभी तक खाने के लिए मजबूर हो गए ये मजदूर, खुद किसी तरह पहुँच रहे है छत्तीसगढ़ बॉर्डर, 


ऐसे में झारखंड के मुख्यमंत्री सोरेन साहब से सीखना चाहिए कि जिन्होंने मामला तुरंत संज्ञान में लिया, जिसका हल ये निकला कि छत्तीसगढ़ राज्य की सरकार ने तुरंत वहां के मजदूरों की व्यवस्था करवा दी।
पर अफसोस, कि ट्वीट से सोरेन साहब को जवाब देने वाले हमारे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री जी ने भी अगर मामला संज्ञान में लिया होता, तो छत्तीसगढ़ के महासमुंद के इन मजदूरों को भी वहां की राज्य सरकारें वैसे ही भेजती, जैसे कि झारखंड के मजदूरों को छत्तीसगढ़ से भेजा गया।


मजदूर की मजदूरी इतनी होती है क्या कि वो 87,000/रुपयों में छत्तीसगढ़ पहुँच रहा है। अब ये मजदूर बॉर्डर से लगभग 50,किलोमीटर दूरी पर अपने गाँव पहुँच जाएंगे, या फ़िर यहां अपने ही राज्य के आकर भी इन्हें फिर से कोई बड़ी रकम लेने के बदले छोड़ने वाला मिलने वाला है, ये तो देखने की बात है।
हालांकि मेरी बात हुई तो बार बार मैंने बोला है कि बॉर्डर पहुचकर, क्षेत्र का थाना बताना, तो हम कुछ दोस्तों से बात करके कोशिश करेंगे कि अपने राज्य में आकर कोई इनसे वसूली नॉय कर पाए, और सही सलामत घर पहुँच जाए ये मजदूर भी।।


नई अपडेट होगी, तो दूंगी।


वाह सरकार।।


प्रियंका शुक्ला
बिलासपुर