ये वक़्त इन बातों पर लिखने का भी नहीं,
मगर तुम्हारी "प्राथमिकतायें" भी कमाल हैं,
देश अनिश्चितकालीन लॉकडाउन है, स्टूडेंट्स घर जा चुके हैं, लोग घरों में कैद हैं ,सड़के सूनी...
मगर तुम्हारे लिये मज़दूर लगा कर पहले इन खूबसूरत कविताओं और चित्रों को मिटाना ज़रूरी है ..
ज़रूरी है रोहित वेमुला की ज़िंदगी के बाद उसके मुस्कुराते चेहरे को भी दीवार से मिटा देना, दुष्यंत कुमार,सर्वेश्वर,फ़ैज़,दिनकर,निराला,गोरख,अदम की कविताओं को मिटा देना..
नजीब के चेहरे को सियाह कर देना..
और उस भगत सिंह को हिंदुस्तान की हर दीवार से मिटा देना, जिसका कल ही तो अभी शहादत दिवस गुजरा है..
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सचमुच कला और कविताओं के दुश्मन हो तुम
.लोकतंत्र के दुश्मन..
चूहे के दिल से ज़्यादा नहीं है औकात तुम्हारी..
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याद रखो ! चैप्लिन ने कहा था..
हर कला जनता के नाम एक प्रेमपत्र है..
ये हमारे प्रेमपत्र हैं..
प्रेमपत्र कभी नष्ट नहीं होते..
फिर लिखे जायेंगे..
तुम थक जाओगे..
इंक़लाब के फूल खिलते थे..खिलते हैं
और खिलते रहेंगे
----दीपक कबीर