हम,  भारत के लोग'

" कृपया ध्यान दें"
'हम,  भारत के लोग'
अरुणांचल प्रदेश, मिजोरम, मणिपुर, गोवा, कर्नाटक , मध्यप्रदेश और अब गुजरात में चुने हुए जनप्रतिनिधियों के आचार व्यवहार एवम राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से चरित्र निर्माण का प्रशिक्षण पाए राजनीतिक दल के व्यवहार से अब स्पष्ट होता जा रहा है कि  भारतीय संसदीय प्रणाली में चुनाव की अहमियत कमोवेश अप्रासंगिक हो चली है। कोई अन्य दल  यदि सरकार बना भी लेगा तो उसे चला नहीं पायेगा। 
 क्या अब इस बात पर विचार नहीं किया जाना चाहिए कि प्रत्येक चुने हुए सदन के लिए प्रतिनिधि एक निश्चित रकम सरकारी खजाने में जमा कर दे और यदि एक से ज्यादा उम्मीदवार हों तो वे आपस में बोली लगाकर स्वयं को चुन लें। इससे जनता भी सुखी होगी और स्वयं को दोष भी नहीं देगी। सरकारी खजाने में वृद्धि होगी और तमाम संस्थानों पर दोषारोपण भी नहीं होगा।
         अथवा
  सभी राजनीतिक दलों (भाजपा के अलावा)से अनुरोध है कि वे अपने अपने प्रतिनिधियों से इस्तीफे दिलवा दें। जिन राज्यों में गैर भाजपा सरकारें अभी भी संकट में नहीं हैं , वे भी अपने यहाँ राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा कर दें।
 हमारे पास अब सत्याग्रह के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। भारतीय लोकतंत्र को नई दिशा देने और संविधान की भावना  को पुनर्स्थापित करने के लिए सभी राजनीतिक दलों व सामान्य नागरिकों को संघर्ष के लिए  स्वयं को तैयार करना होगा। 
 हर रोज सुबह संविधान की प्रस्तावना का पाठ अनिवार्य रूप से करना ही होगा।
 गांधी, नेहरू, पटेल, लोहिया, विनोबा, जयप्रकाश नारायण को पुनः नए सिरे से समझना होगा। 
 देरी तो गई है पर अभी भी बात बन सकती है। दूसरों के भरोसे या बल पर यह नहीं हो सकता। लोकतंत्र ही संविधान की आत्मा है। हर हाल में इसे कायम रखना होगा। जय हिंद।


चिन्मय मिश्र