विधायको की खरीद - बिक्री के सारे सूत्र इस समय भाजपा के पास है l इसलिए सभी विपक्ष की पार्टियां भाजपा की कुदृष्टि से सहमी रहती हैं l हैरत उन कांग्रेसियों को देखकर होती है जो स्वयं बाज़ार में बिकने के लिए खड़े है और खरीदने वालों पर आरोप लगा रहे हैं l कांग्रेस सबसे पुराना और राष्ट्रीय स्तर का दल है l आप अलग अलग प्रांतों में एक ट्रेंड स्पष्ट रूप से देख सकते है कि कांग्रेस के विधायकों को आसानी से पटाया और खरीदा गया है जबकि अन्य पार्टियों के विधायकों को खरीदने में भाजपा को पसीना आ गया l
कांग्रेस कभी एक पार्टी हुआ करती थी जिसके खाते में आज़ादी के आंदोलन का पुण्य था l आज कांग्रेस एक भीड़ का नाम है जिसमे अलग अलग स्वार्थ के लिए लोग एकत्रित हुए है l कई गिरोहों में बटी हुई कांग्रेस की एकता इन गिरोहों के संतुलन पर निर्भर करती है l
कांग्रेस में सेवा सादगी और सिद्धांत अब आदर्श नहीं है l जो भी लाभ के पद पर आता है वह अपनी सात पीढ़ियों के इंतजाम की बात सोचता है l ऐसी राजनैतिक संस्कृति में कोई विधायक अगर एक मुश्त राशि लेकर अपना भविष्य सुरक्षित कर ले तो क्या हर्ज है ? विधायक बना व्यक्ति यह अच्छी तरह जानता है कि अगली बार टिकिट कट भी सकती है और अगर मिल भी गई तो इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि जीत ही जायेंगे ? इसलिए विधायक प्रलोभन में आकर गद्दारी करने में नहीं हिचकते l कांग्रेस की तरह कम्युनिस्ट पार्टी के विधायकों को इस तरह नहीं खरीदा जा सकता क्योंकि वे अपने सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्ध होते है l
भाजपा के पास अकूत धन है l सारे कार्पोरेट्स अब भाजपा को ही चंदा दे रहे है l
पिछले वर्ष भाजपा को 800 करोड़ रुपये चंदा से आमदनी हुई l भाजपा आपका ईमान - धर्म सब कुछ खरीदने की सामर्थ्य रखती है l सवाल सिर्फ इतना है कि आप अपने विचारों और आदर्शों के प्रति कितने प्रतिबद्ध हैं l
गोपाल राठी
लेखक सामाजिक कार्यकर्ता है