भ्रष्टाचार से मुक्तिदाता 'जूनियर महाराज' असहज हो जायेंगे.

भ्रष्टाचार से मुक्तिदाता 'जूनियर महाराज' असहज हो जायेंगे. क्यों जस्टिस वर्मा ने कहा था- #जैन_हवाला_कांड की फिर से जांच होनी चाहिए?


वरिष्ठ पत्रकार श्री पुष्प रंजन जी लिखते हैं:- आज जूनियर महाराज बीजेपी की सदस्यता लेते समय टंच माल बने हुए थे. 9999 शुद्ध सोने जैसा. पिता की ईमानदारी को याद कर रहे थे.  मगर अफ़सोस, इतिहास भूल गए.


जेएनयू में देशद्रोह का एक भयानक मामला अप्रैल 1991 में उजागर हुआ था. उस समय जेएनयू का एक शोध छात्र शहाबुद्दीन टाडा में पकड़ा गया. पता चला वो जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) का एजेंट था. हवाला के जरिए विदेशों से आया पैसा वो जेकेएलएफ को पहुंचाता था. उसकी गिरफ्तारी से कई सुराग मिले. उस सुराग पर जे के जैन के यहां 3 मई, 1991 को तलाशी हुई. तलाशी में ब्यूरो के हाथ 58 लाख रुपए नकद आए.’ इसके अलावा ‘दो डायरियां और एक नोटबुक भी वहां से मिले. 


उस डायरी में नामों के खुलासे से उस समय की भारतीय राजनीति में भूचाल आ गया था.1988 से लेकर 1991 तक करीब 65 करोड़ रुपए इस देश के 67 बड़े नेताओं और 3 बड़े नौकरशाहों ने हवाला काराबारियों से लिए थे. वही हवाला कारोबारी कश्मीरी आंतकवादियों को भी विदेशी धन पहुंचा रहे थे. और उसी चैनल के जरिए आंतकी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन को भी फंड दिए गए थे। 


कम्युनिष्टों को छोड़कर, यह सर्वदलीय घोटाला कांड था. जिन कुछ नेताओं ने जैन बंधु से 'चंदा या कर्ज' लेने की बात स्वीकारी थी, उनमें आरिफ मुहम्मद ख़ान ( इस समय केरल के राज्यपाल) , चांद राम, चंद्रजीत यादव, शरद यादव, पुरूषोत्तम कौशिक, एल पी शाही और प्रेम प्रकाश पांडेय शामिल थे.
माधव राव  सिंधिया उन दिनों पर्यटन मंत्री थे. मात्र एक करोड़ रुपये की घूस का खुलासा जैन हवाला डायरी में हुआ था. जनवरी 1996  में माधव राव  सिंधिया को मंत्री पद त्यागना पड़ा. कांग्रेस ने इस वजह से अप्रैल-मई 1996  के लोकसभा चुनाव में माधव राव सिंधिया को टिकट देने से इंकार कर दिया था. 


चर्चित जैन हवाला कांड के रफा-दफा हो जाने के कई साल बाद एक सार्वजनिक बैठक में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड चीफ जस्टिस जे.एस वर्मा ने कहा था कि उस कांड की फिर से जांच होनी चाहिए. क्या यह संभव है? इस कांड ने भारतीय राजनीति की तुरपन खोल दी थी. सचमुच इस कांड की दोबारा से जाँच हुई, तो जूनियर महाराज जी असहज हो जायेंगे.