गम्भीरता से सोचिये
जिन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया को पिछले लोकसभा चुनाव में हराया वे तो साधारण सांसद ही रहेंगे और राज्यसभाके माध्यम से बैकडोर से प्रवेश करने वाले कथित श्रीमंत के केबिनेट मंत्री बनने की संभावना है। बीजेपी कार्यकर्ताओं का इससे ज्यादा अपमान और क्या हो सकता है। ठीक यही मध्यप्रदेश की विधानसभा राजनीति में भी होगा। संघर्ष करने वालों के टिकिट कट जाएंगे। अधिकांश दलबदलू मंत्री बन जाएंगे और सामान्य कार्यकर्ताओं के जीवनभर के संघर्ष को गटर में फेंक दिया जाएगा।
यह लोकतंत्र का मख़ौल ही तो है। अगर राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं में जरा सा भी आत्मसम्मान बचा हो तो वे गुलामी से बाहर आएं और अपने नेतृत्व की स्वार्थपरता व तानाशाही का विरोध करें। जहां भी इस तरह की बन्दरबांट हो रही हो वहां के स्थानीय कार्यकर्ता अपना दल छोड़ने पर विचार करें। अगर कांग्रेस भी भाजपा की तरह व्यवहार करें तो उसके कार्यकर्ताओं को इसे नकारना चाहिए।
भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को अपमानित कर रही है। वे इसका माकूल जवाब दें। अपनी प्रतिष्ठा बनाएं रखें। हाईकमान के अनुचित निर्णय को अस्वीकार करें। राजनीतिक दल कार्यकर्ताओं की मेहनत से बनते हैं। उनका तिरस्कार दल को मटियामेट भी कर सकता है। भाजपा आलाकमान की तानाशाही इस दल को नष्ट कर देगी।
आमीन
चिन्मय मिश्र