असली भारत रास्ते में जहाँ भी मिलें इनके खाने और पानी का इंतजाम करें.

महानगरों से गांवों की ओर पैदल भागता बेबस भारत...



लाकडाउन का एलान होते ही मेहनतकश मजदूर भारत के बड़े शहरों और महानगरों से बाहर कर दिया गया क्योंकि हाड़तोड़ मेहनत करने के वावजूद भी उसे उस शहर में,जिसे उसने बनाया और संवारा है,एक अदद छत तक नसीब नहीं हो सकी है. उल्टे विकास के शोरगुल में उसकी मज़बूरी और गरीबी आंकड़ों के बोझ तले हमेशा से ही दबा दी गयी है. सामाजिक दूरी और लाकडाउन के कारण उसे वापस जाने के लिए कह दिया गया. और यह जाने बिना कि उसके पास लौटने का साधन है या नहीं. कहीं कहीं तो पुलिस ने बर्बरता से इन्हे लाठियों से पीट-पीट कर शहर से बाहर कर दिया. भूखे प्यासे बूढ़ों बच्चों महिलाओं के साथ हिन्दोस्तान का यह निर्माता घर वापसी के लिए हजारों किलोमीटर की पैदल यात्रा पर निकल पड़ा. यह तब जबकि आबादी का यही तीन चौथाई हिस्सा है जो देश में उत्पादन करता है और हुकूमत करने के लिए सरकारें बनाता है. कोई कुछ भी कहे असल में भारत है ही कामगारों का देश.मगर मुट्टीभर अमीरों ने आजादी के बाद देश की सत्ता और साधन पर कब्ज़ा कर लिया और इनको गरीबी,अशिक्षा और कुपोषण के दलदल में धकेल दिया.यह साफ दिखा जब रोजगार खो चुका यह मेहनतकश लाकडाउन के बाद दिल्ली के यमुना पुस्ता में भखारियों के साथ अपनी भूख मिटाने के लिए हजारों की संख्या में कतार में बैठा दिखाई दिया. और लाखों मजदूर बम्बई व् जयपुर से परिवार सहित बनारस, बलिया, देवरिया, गोरखपुर और बिहार की पैदल यात्रा पर निकल पड़े. मगर इनका दर्द और आवाज सुनने वाला कोई नहीं था वह तो तालियों और थालियों की गूंज में डूब गयी.हिन्दोस्तान हमें इतना बेबस कभी नहीं दिखा. इनमें ज्यादातर गरीब हिन्दू हैं मगर उनमें से कुछ मुस्लिम सिक्ख ईसाई भी हो सकते हैं ज़िन्दगी की लड़ाई में सब साथ हैं एक दूसरे का हाथ थामे हुए. आप सबसे अपील है कि यह असली भारत रास्ते में जहाँ भी मिलें इनके खाने और पानी का इंतजाम करें.


अम्बरीष राय