जब आप गोलवलकर को पढ़ेंगे तो समय पाएंगे कि अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ना भी हिन्दू राष्ट्र वाद की ही परियोजना का हिस्सा है.
जरा नोटबंदी, बैंकों के एनपीए, पीएमसी, फिर यस बैंक का डूबना और कई कंपनियों के बर्बाद होने को मिलाकर देखिए.
इसी में यह भी मिला लीजिये कि 2014 से 2019 के बीच कोई पांच लाख भारतीय करोड़पति विदेशों में जा बसे हैं. और अगर हर बंदा एक करोड़ ले गया तो पांच लाख करोड़ तो यही चले गए.
इसी में यह भी मिला लीजिये कि सरकार की नीतियों के कारण कई उद्योगपति डिफाल्डर हो गए, जबकि दो उद्योगपतियों की दौलत दो गुनी से भी ज्यादा बढ़ गई. क्या इन दो उद्योगपतियों के नाम भी बताने पड़ेंगे.
अभी एक चीज और आपको इसी में मिलानी होगी. वह यह कि अर्थव्यवस्था डूब रही है और सरकार के चेहरे पर शिकन भी नहीं है.
इन सभी तथ्यों को मिलाकर क्या चित्र बनता है. वही जो गोलवलकर ने कहा है.
अपनी किताब वी और अवर नेशनहुड डिफाइंड में गोलवलकर लिखते हैं-एक अच्छे प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके राज्य में जनता की आमदनी कम से कम रहे. धनवान नागरिकों पर नियंत्रण करना कठिन होता है, इसलिए दौलत एक दो या ज्यादा से ज्यादा तीन ऐसे लोगों के हाथ में केंद्रित कर दी जानी चाहिए जो प्रशासक के प्रति बफादार हों.
गोलवलकर के उक्त वचन की कसौटी पर सरकार की आर्थिक नीतियों को कसकर देखिए, आपकी समझ में आ जायेगा कि झोल कहां है.
उक्त वचन वी और अवर नेशनहुड डिफाइंड के सातवें संस्करण के पेज नंबर 40 से लिया गया है.
हरिबोल
- प्रांजल श्रोत्रिय