स्वामी सहजानन्द सरस्वती :: भारत में किसान आन्दोलन के जनक


जन्म : महाशिवरात्रि के दिन, 22 फरवरी 1889, गाजीपुर
मृत्यु : 26 जून 1950.
वे आदि शंकराचार्य सम्प्रदाय के दसनामी संन्यासी अखाड़े के दण्डी संन्यासी के साथ ही एक वुद्धिजीवी, लेखक, समाज सुधारक, क्रांतिकारी, इतिहासकार एवं किसान नेता थे। ऑल इंडिया किसान सभा के संस्थापक थे।
मनीषी स्वामी सहजानन्द सरस्वती ... अंग्रेजों के खिलाफ बागियों की जमात में अपनी कलग पहचान, एक अलग तेवर के साथ, अन्याय और उस पर लीपा-पोती के प्रति पूरी तरह असहिष्णु .... उठाया था बगावत का झंडा उसने अंग्रेजों के खिलाफ, उनके अर्थशास्त्र और अर्थ नीति के खिलाफ जिसका निरीह प्रयोग हो रहा था एक कारगर हथियार के रूप में देश के किसानों के खिलाफ। ले रहा था सबक वह पहले की बगावतों से .......... सबसे  ताजा बगावत रुस की महान क्रांति से।
सर्वनाश सामने था .... इसी बिभीषिका को देखते हुये  "भागो नहीं , दुनिया को बदलो" के तर्ज पर उसने आह्वान किया था किसानों और मजदूरों का बगावत का विगुल बजाने का।
अंग्रेज चले गए .... 72 साल गुजर गए .... आजादी के बाद कितनी सरकारें आई ... गई .... किसानी आज भी तबाह है ..... किसान बदहाल है। खेती आज भी घाटे का ही नहीं ... बड़े घाटे का सौदा है। हमारे देश में खेती को घाटे का सौदा जानबूझकर बनाया गया है। अंग्रेजों ने किसानों का शोषण करके अपने विकास के लिए पूंजी जमा की। उनका शोषण तो दिखाई पड़ता था। परन्तु आजादी के बाद हमारी सरकारों ने गांव के किसान-मजदूर-कारीगर की हकदारी की हेराफेरी करके उसकी कमर तोड़ दी।
स्वामी जी ने एक बड़े मार्के की बात कही थी, जो आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। उन्होंने कहा था कि 
"हमारे देश के किसान और मजदूर अलग - अलग नहीं हैं। उनकी लडाई एक है। आज का हारा हुआ किसान ही तो कल का खेत मजदूर है। हर खेत मजदूर की एक ही ललक है, उसके पास भी दो वीघा जमीन हो जाती। जब तक उसके मन में यह ललक है वह सर्वहारा मजदूर न होकर बिना जमीन का किसान ही है। अगर देश में किसान मजदूर के निरीह शोषण के खिलाफ लड़ाई लड़नी है तो इस भेद को समझना होगा और किसान और खेत मजदूर को एक झंडे के नीचे लाम-बंद होना होगा।"
सहजानन्द सरस्वती को नमन ... इंकलाबी लाल सलाम!