वो तीन गोलियां ही काफी नही थी, तुम जान गए न। तुम जान गए कि जरूरत लाखों-लाख गोडसे और लाखों-लाख गोलियों की है। सो तुमने पूरी ताकत लगा दी #मैं_भी_गोडसे के नारे पर। तुमने गोडसे के मंदिर बनवा दिए। अपने बच्चों के हाथों में हथियार थमा दिए, उन्हें रॉड और एसिड के बबूले दे दिए। उन्हें गालियां और गांधीवध की चौपाइयां रटा दीं।
पर जब तुम घर-घर से गोडसे निकाल रहे थे, घर-घर से गांधी निकल आया।
अब देखो। मैं ही तो बैठा हूँ हर बाग में, मैं सड़को पर घूम रहा हूँ, यूनिवर्सिटी में मुस्कुरा रहा हूँ। ट्वीट भी कर देता हूं, पोस्टर लेकर आ जाता हूँ। धरनों में बैठ जाता हूँ। मैं ही सर फूडवाता हूँ। मैं जेल जाता हूँ। और सच कहूँ, तो तुम्हे शुक्रिया कहना चाहता हूँ।
शुक्रिया इसलिए कि मेरी अधूरी लड़ाई के लिए तुमने मुझे फिर से जिंदा किया। अधूरी लड़ाई... वही जो मैं तुम्हारी गोलियों का शिकार होने के पहले नोआखाली में लड़ रहा था। फिरकापरस्ती के खिलाफ, अन्याय के खिलाफ, तुमने जो नफरत फैलाई थी, उस नफरत के खिलाफ।
तो आज मैं फिर खड़ा हो गया, तुम्हारी कोशिशों की बदौलत। तुम्हारी लाठियों के सामने, एसिड के बबूलों के मुक़ाबिल। फिर सोचता हूँ, गांधी की आवाज से गांधी का लहू ताकतवर था।
इसलिए फिर वही चाहता हूँ। आओ, आगे बढ़ो। ये बूढा सीना तुम्हारी छाती के बराबर चौड़ा तो नही है, लेकिन इसमें इतना लहू जरूर है, कि मेरे देश मे लाखों गांधी और सींच दे। इसलिए पूछता हूँ...
श्रद्धांजली देने आए हो... क्या पिस्तौल फिर लाये हो???