शामिल होने के लिए अपील
यह आपके लिए लेखकों और कलाकारों के कुछ संगठनों की ओर से आगामी एक मार्च को 11 बजे से दिल्ली के जंतर मंतर पर होने वाले अखिल भारतीय लेखक कलाकार सम्मेलन में शामिल होने की एक अपील है। यह सम्मेलन देश भर में चल रहे सीएए-एनपीआर-एनआरसी विरोधी आंदोलनों के प्रति देश के लेखकों और कलाकारों की एकजुटता जाहिर करने और देश के सामने रचनात्मक प्रतिरोध के दूरगामी कार्यक्रम के लिए जंतर मंतर घोषणा जारी करने केउद्देश्य से किया जा रहा है। हम आप सभी से इस सम्मेलन में सक्रिय सहभागिता कर अपने विचारों से इसे समृद्ध करने की अपील करते हैं।
साथियो,
हम सब देख रहे हैं कि पिछले पचास से अधिक दिनों से देश भर में करोड़ों लोग सड़कों पर डटे हुए हैं। देश के करोड़ों लोग हालिया नागरिकता संशोधन कानून, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के लिए मांगी जा रही जानकारियों में विस्तार और अखिल भारतीय नागरिकता रजिस्टर के प्रस्तावों के जरिए भारतीय संविधान के बुनियादी ढांचे पर मंडरा रहे गम्भीर संकट से विचलित हैं और चाहते हैं कि इन्हें रद्द किया जाए।
हमारा मानना है कि सीएए- एनपीआर - एनआरसी परियोजना भारतीय संविधान के दो बुनियादी सिद्धांतों - लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता- का उल्लंघन करती है। इस तरह यह हर भारतीय के राष्ट्रीय स्वप्न को गम्भीर नुकसान पहुंचाने तथा भारतीय राष्ट्रवाद को विरूपित करने की चेष्टा करती है।
हम मानते हैं कि भारतीय स्वप्न का सारतत्व समन्वय की एक विराट चेष्टा हैl यह भी कि भारतीय राष्ट्रवाद शुरुआत से ही समावेशी और बहुलतावादी रहा है।
हम यह भी देख रहे हैं कि भारत की मौजूदा सरकार ने आंदोलनकारियों से संवाद करने कीजगह बर्बर पुलिसिया दमन का रास्ता अपनाया है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने खुलेआम बदला लेने की भाषा का इस्तेमाल किया । दिल्ली चुनावों के दौरान उन्होंने बिरयानी की जगह गोली खिलाने की बात भी कही। एक अन्य केंद्रीय मंत्री ने गोली मारने के नारे भीड़ से लगवाए। अब तक पुलिस की गोली सेतीस से अधिक आंदोलनकारी जान गंवा चुके हैं।
देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री जनमानस में यह बिठाने में लगे हैं कि यह आंदोलन देशद्रोह का एक प्रयोग है, जो देश के टुकड़े करने पर आमदा है। गाली के तौर पर ‘टुकड़े टुकड़े गैंग’ जैसा एक काल्पनिक भूत खड़ा किया हुआ है जिसके कहीं भी न मौजूद होने को खुद लोकसभा में एक प्रश्न के जवाब में गृहमंत्रालय ने स्वीकार किया है।
साफ़ दिख रहा है कि पुलिस और सत्ताधारी दल के काडरों को आंदोलन से हिंसक तरीकेसे निपटने का संदेश दिया जा रहा है। यह सन्देश जमीन स्तर पर भी फलीभूत हुआ है। शाहीन बाग में साम्प्रदायिक घृणा से प्रेरित गोली चलाने की एकाधिकघटनाएं हो चुकी हैं। इन घटनाओं के दौरान केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन कामकरने वाली दिल्ली पुलिस की भूमिका के बारे में कई गम्भीर सवाल अनुत्तरित हैं।
इस बेहद दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम से एक बात साफ हो गई है। सीएए के प्रस्तावकों का यह दावा बिल्कुल झूठा है कि वे नागरिकता लेने की नहीं देने की बात कर रहेहैं । उनका यह दावा भी झूठा है कि सी ए ए और एन आर सी के कारण भारत के किसी नागरिक को चिंतित होने की जरूरत नहीं है। असम में हुए एन आर सी के नतीजे से वहां के नागरिकों की जो दुर्दशा हुई उससे देश के अवाम सरकार के किसी भी आश्वासन के पीछे छिपे झूठ को पहचान रहे हैं और इसीलिए प्रतिरोध में लगातार तेज़ी ला रहे हैं।
अभी तो अखिल भारतीय एन आर सी आया भी नहीं , लेकिन अभी से उन करोड़ों आंदोलनकारियों को देश विरोधी ठहराया जा चुका है, जो सी ए ए और एन आर सी सेसहमत नहीं है। उनकी देशभक्ति पर केवल संदेह किया गया हो, इतनी ही बातनहीं। उन्हें सीधे सीधे देश का दुश्मन क़रार दिया जा चुका है। उनकी नागरिकता को अभी से शक के दायरे में डाल दिया गया है, जबकि वे भारतीय संविधान की रक्षा में सड़कों पर उतरे हैं।
शाहीन बाग़ तक करंट पहुंचाने की बात करने वाले और शाहीन बाग़ को कपड़ों सेपहचानने वाले नेताओं ने बिना एन आर सी के ही शाहीन बाग़ और देश को आमनेसामने खड़ा कर दिया है! यह बात अलग है कि दिल्ली के मतदाता ने इस विभाजन कोनकार दिया. इस नकार में सीएए के साम्प्रदायिक और विभाजनकारी सिद्धांत कानकार अंतर्निहित है। भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली विधान सभा का चुनाव प्रमुख रूप से सीएए के मुद्दे पर लड़ा था. इस चुनाव में भाजपा को बुरी हार का सामना करना पडा है ।
सीएएभारतीय संविधान के बुनियादी ढांचे के खिलाफ़ है, क्योंकि यह नागरिकता देनेके सवाल पर अवैध आप्रवासियों के बीच धर्म के आधार पर भेदभाव करता है.भारतीय संविधान में भेदभाव का निषेध केवल भारतीय नागरिकों तक सीमित नहींहै . रंग, लिंग, जाति, धर्म , नस्ल आदि किसी भी रूप में मानव मानव के बीचभेदभाव करना भारतीय संविधान के आधारभूत मूल्यों के खिलाफ है. इतना ही काफीनहीं है कि हम अपने देश के नागरिकों के बीच इन आधारों पर भेद भाव नहींकरते. इतने भर से गैर-नागरिकों, विदेशियों और शरणार्थियों के बीच भेद भावकरने का अधिकार संविधान से नहीं मिल जाता. चकमा शरणार्थियों के मसले परसुप्रीम कोर्ट स्पष्ट रूप यह व्यवस्था दे चुकी है ।
धर्म के आधार पर भेदभावको सिद्धांत रूप से संविधान में शामिल करते ही वह सर्वत्र लागू हो जाता है. आप जिसआधार पर गैर नागरिकों के बीच भेदभाव करते हैं, वह स्वतः नागरिकों के बीच भीभेदभाव का आधार बन जाता है. दिल्ली चुनाव के दौरान सारी दुनिया इस सच्चाईको प्रत्यक्ष देख चुकी है. चुनावी ध्रुवीकरण के लिए दो धार्मिक समुदायोंके बीच युद्ध जैसी स्थिति पैदा करने की कोशिश की गई , भले ही जनता ने ऐसीतमाम कोशिशों को विफल कर दिया । भारतीय संविधान के मूलभूत सिद्धांतों को बचाने के लिए इस तरह की हर कोशिश को नाकाम करना हर भारतीय का राष्ट्रीय कर्तव्य है
साथियो, सीएए-एनपीआर- एनआरसी परियोजना हमारे राष्ट्रवाद और लोकतंत्र दोनों के सामने आई सबसे कठिन चुनौती है, लेकिनखुशी की बात यह है कि देश भर में करोड़ों लोग, ख़ासतौर पर महिलाएं और नौजवान -इस परियोजना के खिलाफ़ प्रतिरोधी सत्याग्रह में उतर चुके हैं ।
यह जरूरी है कि देश भर के हम लेखक कलाकार इन प्रतिरोधों के प्रति अपना नैतिकऔर सैद्धांतिक समर्थन व्यक्त करें और इस आन्दोलन के सक्रिय सहभागी केरूप में खुद को देश के सामने उपस्थित करें ।
इसी उद्देश्य से दिल्ली के जन्तर मन्तर पर एक मार्च 2020 को आहूत अखिल भारतीय लेखकसम्मेलन में हम आपकी सक्रिय भागीदारी का अनुरोध करते हैं।
दलित लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ,जन संस्कृति मंच,न्यू सोशलिस्ट इनिशिएटिव, प्रगतिशील लेखक संघ, जनसंस्कृति (मलयालम), इंडियन कल्चरल फोरम, जन नाट्य मंच, विकल्प, दिल्ली विज्ञान मंच