पुलवामा अटैक 


14 फरवरी 2019 की पोस्ट 
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जम्मू-कश्मीर के ख़ुफ़िया विभाग का मानना है कि कश्मीर के पुलवामा में अर्धसैनिक बलों पर हुए वीभत्स हमले को टाला जा सकता था. इस हमले में सीआरपीएफ़ के 42 जवानों की मौत हुई है और कई ज़ख़्मी हैं.


एक शीर्ष सुरक्षा अधिकारी ने बीबीसी को बताया कि पूरे देश की सुरक्षा एजेंसियों को 12 फ़रवरी को अलर्ट किया गया था कि जैश-ए-मोहम्मद सैन्य बलों पर बड़ा हमला कर सकता है. पुलवामा में हुए हमले की ज़िम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद ने ही ली है.


बीबीसी को विश्वसनीय सूत्रों से जानकारी मिली है कि हमले के तुरंत बाद पुलिस महानिदेशक दिलबाग सिंह ने नई दिल्ली में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को भी यही बात बताई है.


जैश-ए-मोहम्मद ने एक वीडियो जारी किया था जिसमें अफ़ग़ानिस्तान में इसी तरह का हमला दिखाया गया था. संगठन ने दावा किया था, "जुल्म का बदला लेने के लिए" वह कश्मीर में इसी तरह से हमला करेगा. इसी वीडियो के आधार पर राज्य के ख़ुफ़िया विभाग ने जानकारियां साझा की थीं.


पहचान गुप्त रखे जाने की शर्त पर एक सुरक्षा अधिकारी ने बताया कि अगर स्टेट इंटेलिजेंस की इनपुट को नई दिल्ली के साथ पहले से ही शेयर किया गया था तो 14 फ़रवरी को पुलवामा में हुआ हमला साफ़ तौर पर सुरक्षा में एक बड़ी चूक है.


1998 में करगिल युद्ध के बाद जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा ने कई आत्मघाती हमले किए थे.


मगर इन आत्मघाती बम हमलों को अंजाम देने वाले चरमपंथी पाकिस्तानी नागरिक हुआ करते थे. यह पहला मौक़ा है जब जैश ने दावा किया है कि पुलवामा के स्थानीय लड़के आदिल उर्फ़ वक़ास कमांडों ने इस गतिविधि को अंजाम दिया.


यह हमला इतना ख़तरनाक था कि इसकी चपेट में आई एक बस लोहे और रबर के ढेर में तब्दील हो गई है. इस बस में कम से कम 44 सीआरपीएफ़ जवान सवार थे.


प्रशासन का कहना है कि यह काफ़िला जम्मू से श्रीनगर जा रहा था. इन जवानों को आगामी संसद और विधानसभा चुनाव से पहले श्रीनगर और दक्षिण कश्मीर ज़िलों में तैनात किया जाना था. जान गंवाने वाले अधिकतर जवान बिहार के रहने वाले थे. 


Anil Janvijay