पूर्वी बंगाल के हिंदुओं को लौटाना होगा या उनके लिए पाकिस्तान जमीन दे'- सरदार पटेल।

कोलकाता में सरदार का बयान-
पूर्व बंगाल की समस्या कठिन है । वहां लगभग डेढ़ करोड़ हिन्दू हैं । वे निर्बल हैं और सौम्य हैं। पंजाब के लोग उनसे भिन्न थे।वे बलवान थे, अपनी बात को दृढ़तापूर्वक रख सकते थे और लड़ भी सकते थे। पूर्व बंगाल के हिन्दू दुखद स्थिति में हैं। कोई व्यक्ति किसी कारण के बिना अपना घरबार नहीं छोड़ना चाहता। अंत में तो भारत में उन्हें भूखों ही मरना होगा। वे अपना वतन छोड़कर भारत में इसलिए आते हैं कि वहां वे जिन परिस्थितियों में रहते हैं,वे बुरी हैं -दुःखदायी हैं । यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न था, जिसमें हाल में हुई आन्तर-औपनिवेशिक परिषद में चर्चा हुई थी और हम आशा करें कि दोनों सरकारों के बीच कोई संतोषप्रद समझौता इस बारे में हो जाएगा। बेशक ,यह एक गंभीर प्रश्न है और इसकी गंभीरता पाकिस्तान के सामने स्पष्ट कर दी गई है। जिन हिन्दुओं ने पूर्व बंगाल छोड़ दिया है और अब भारत में निराश्रित के रूप में रहते हैं,उन्हें वहां लौटना होगा।भारत उसका बोझ नहीं उठा सकता और यदि वे यहीं रहे और दूसरे आते जायें,तो भारत के सामने गंभीर समस्याएं खड़ी हो जायेंगी।पाकिस्तान सरकार को ऐसी परिस्थितियां पैदा करनी चाहिए ,जिससे ये लोग वहां जाकर अपने घरों में शान्ति से रह सकें। पाकिस्तान सरकार को त्रास या अत्याचार से उनकी रक्षा करनी चाहिए।उन्हें यह विश्वास दिलाया जाना चाहिए कि पाकिस्तान में उनके प्राणों को कोई खतरा नहीं रहेगा। मैंने कुछ समय पहले सुझाया था कि अगर हिंदू पैदा की गई असंतोषप्रद स्थिति स्थिति के कारण बड़ी संख्या में पूर्व बंगाल छोड़ने को मजबूर हो जायें,तो पाकिस्तान सरकार को उन्हें बसाने के लिए अतिरिक्त भूमि भारत को देनी चाहिए। यह सुझाव पारस्परिक चर्चा और समझौते द्वारा इस कठिन समस्या के एक हल के एक उपाय के रूप में ही दिया गया था। यह सुझाव न तो चुनौती के रूप में रखा गया था और न उसे बलपूर्वक लादने का कोई इरादा था। मेरे मन में पाकिस्तान के खिलाफ कोई आक्रामक इरादा नहीं है और मैं यह मानता हूं कि दोनों उपनिवेशों को पारस्परिक चर्चाओं द्वारा मैत्रीभाव से यह समस्या हल करनी चाहिए। अगर मेरे मन में ऐसा इरादा होता, तो मैं गांधीजी के साथ सारा जीवन नहीं बिता सकता था।


मुझे जो कुछ लगता है उसे कहने में मैं संकोच नहीं करता,फिर भले ही वह हिन्दुओं ,मुसलमानों या अन्य किसीको नाराज ही क्यों न करे। मैं स्वीकार करता हूं कि ऐसा मैं कठोर वाणी में करता हूं, परंतु उपयुक्त भाषा सीखने के लिए मुझे अगला जन्म भी गांधीजी के साथ बिताना पड़ेगा।
(सरदार पटेल ः चुना हुआ पत्र-व्यवहार,१९४५-१९५०,खण्ड२,पृ ३८६-३८७)


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