पूर्व मंत्री शाकिर अली जी को वर्तमान मंत्री सूर्यप्रताप शाही जी ने पुष्पचक्र अर्पित कर दी श्रद्धांजलि.......


        देवरिया जनपद की समाजवादी पार्टी को अपूरणीय क्षति हुई है शाकिर अली जी के असमय चले जाने से क्योकि वे भीड़ के नेता थे या यूं कहें कि वे जननेता थे।
       शाकिर अली जी "पथरदेवा" नई विधानसभा गठित होने के बाद सन 2012 में तत्कालीन भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सूर्यप्रताप शाही जी को हराये थे जिन्होंने 2017 में शाकिर अली जी को हराया है और वर्तमान कैबिनेट में कृषि मंत्री हैं।
      सपा नेता शाकिर अली जी, भाजपा नेता सूर्यप्रताप शाही जी के चिर-परिचित प्रतिद्वंदी थे लेकिन शाकिर अली जी के बीमार होने की खबर सुन सूर्यप्रताप शाही जी उनसे मिलने उनके गांव करजहाँ और अस्पताल मेदांता में गए थे।मृत्यु होने की खबर सुनने पर वे न केवल शाकिर अली जी के गांव आये वरन उनके बेजान शरीर पर पुष्पचक्र चढ़ा,शवयात्रा में शरीक होते हुये उन्हें मिट्टी दिए।
           वैसे तो शाकिर अली जी को मिट्टी देने के लिए देवरिया,कुशीनगर,गोरखपुर की पूरी समाजवादी पार्टी आयी थी।दस हजार से भी ज्यादा उनके चाहने वाले लोग सुबह 08 बजे से शाम 05 बजे तक सिसकते-सुबकते जमे हुये थे लेकिन इन सबमें खास मुझे सूर्यप्रताप शाही जी का आना लगा क्योकि सपा और भाजपा दोनो दो अलग-अलग दिशाओं व विचारधाराओं की पार्टियां हैं,दोनों के सिद्धांत-विचार बेमेल हैँ।इनके अतिरिक्त जो एक और प्रमुख भेद है वह सूर्यप्रताप शाही जी का हिन्दू व शाकिर अली जी का मुसलमान होना भी है।इतने सारे भेद व मतांतर के बावजूद सूर्यप्रताप शाही जी का एक दिन पूर्व लखनऊ जाना और शाकिर अली जी के निधन की खबर सुन पुनः उनकी मिट्टी में शिरकत हेतु अपने समस्त कार्यक्रम निरस्त कर देवरिया आना राजनैतिक मतान्तरों को त्याग कर मानवीय व्यवहार का एक उन्नत नमूना है।
       मैं सूर्यप्रताप शाही जी को इस मामले में कुछ अलग ही पाता हूँ क्योकि माननीय मोहन सिंह जी के निधन पर भी मैंने उन्हें सपा के श्रद्धांजलि सभा मे सपा के झंडा लगे मंच पर बैठे हुये देखा है।वर्तमान राजनैतिक दौर बड़ा भयावह है।अपनी ही पार्टी के नेता का प्रतिकार कर दीजिए तो वह गोली मारने की सरेआम धमकी देने लगता है,दूसरे दल के विरोधी नेता की बात कौन करे,लेकिन ऐसे दौर में सूर्यप्रताप शाही जी का यह कार्य व्यवहार प्रेरणादायक है।
       राजनीति का ऐसा दौर जब कटुता चरम पर हो,राजनैतिक प्रतिद्वंदी एक दूसरे के जानी दुश्मन लगते हो,हम थोड़ा सा विरोध बर्दाश्त कर पाने की स्थिति में न हो,जाति व धर्म की राजनीति आपसी विद्वेष घोल रही हो,सूर्यप्रताप शाही जी से हमें सीख लेनी होगी।
        मुझे पढ़ने को मिला है कि संसदीय चुनाव में कांग्रेस से फिरोज गांधी जी व सोशलिस्ट पार्टी से नन्दकिशोर जी प्रतिद्वंद्वी थे लेकिन सायकिल से चलने वाले नन्दकिशोर जी को जहाज से चलने वाले प्रधानमंत्री नेहरू जी के दामाद फिरोज गांधी जी रोजाना शाम को ढूंढ़वा कर चाय पिलाते थे।कांग्रेस से लड़ने वाले कमलापति त्रिपाठी जी के समाजवादी प्रतिद्वंदी राजनारायण जी रोज ही कमलापति त्रिपाठी जी से चुनाव खर्च बसूल लाते थे और वे सहर्ष दे देते थे।
        शाकिर अली जी अब हमारे बीच नही हैं लेकिन हमें उनका संघर्ष व उनका व्यक्तव्य बखूबी याद है।वे बेलाग बोलते थे।वे बेखौफ लड़ते थे।वे जातिवाद व सांप्रदायिकता के विरोधी थे।वे 2012 के चुनाव में सूर्यप्रताप शाही जी को हराकर जीते थे।चुनाव के दौरान उनका घण्टो दिया जाने वाला ओजस्वी भाषण सूर्यप्रताप शाही जी के कट्टर विरोध में होता था लेकिन उनके इस दुनिया से रुखसत होने के बाद सूर्यप्रताप शाही जी का व्यवहार पुरु व सिकन्दर के उस इतिहास की याद दिलाता है जिसमे सिकन्दर द्वारा पुरु को बंदी बनाये जाने के बाद जब यह पूछा जाता है कि पुरु तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार किया जाय तो पुरु कहते हैं कि जैसा एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है।निःसन्देह सूर्यप्रताप शाही जी का व्यवहार ऐसा ही दिखा जैसा एक राजनैतिक व्यक्ति को दूसरे राजनैतिक व्यक्ति से करना चाहिए।राजनीति करने वाले सभी लोगो को ऐसा आचरण स्वीकार करते हुये खुद के आचरण में इसे अपनाना चाहिए कि हम राजनीति करें,चुनाव लड़ें,विरोध करें,पर उसे निजी दुश्मनी में तब्दील न होने दें।
      शाकिर अली जी की अभी बहुत आवश्यकता थी समाज को व समाजवादी पार्टी को,पर वे असमय चले गए।जाना सबको है पर एक समय से किंतु असमय शाकिर साहब हम सबको छोड़कर चले गए जिसका बहुत दुख है।हम दिल की गहराइयों से दुखी मन से उन्हें नमन है।
-चंद्रभूषण सिंह यादव,देवरिया