पृथ्वी की तरह
स्त्रियाँ बहुत से ऐसे काम कर सकती हैं
जो पुरुष नहीं कर पाएँगे ,यह तय है ,मैंने
देखा है ,पाया है,खोजा है ।
पता नहीं कैसे पृथ्वी-सी होती जातीं हैं औरतें
पृथ्वी-सी ही बोझ उठा लेती है ,पृथ्वी-सी ही
बंजर हो कर भी हरी-भरी हो जाती है ,पृथ्वी-सी
कुछ नहीं कहती हैं ,चाहे जितना भी चल-फिर लें आप
उन पर ,पृथ्वी-सी ही फसल उगाती रहतीं है ,पृथ्वी-सी
ही जलाशय-सी रहतीं हैं ,हम नहीं समझ पातें हैं ।
कभी आपके चेहरे पर खाया कुछ लगा रह जाता है
तो हमें तो कुढ़न होती है ,वह हंस कर हाथ बढ़ा कर
देखिए कैसे प्यार से हटा देतीं हैं ,जैसे अपने ही चेहरे
से हटा रहीं हैं ,उन्हें हमारी बहुत कम चीज़ें खराब लगती हैं
जैसे ग़रीबी के बारे में भी कुछ नहीं कहती हैं ,कैसे
तालमेल करतीं हैं कि आप समझ भी नहीं पाते
और थाली भरी मिलती है ,आलमारी भले ही ख़ाली हो
वे भरी मिलतीं हैं ,कमाल है,कमाल है ।
मेले-ठेले में जाने की बात होती है तो कहती हैं
जब आप चलेंगे ,तो आपको ही सोच लेना होगा कि
कोई ग़लत समय नहीं बता दें कि इनको कि रसोई का काम
जल्दी सलटाना पड़े और कुछ कहे भी नहीं ,बस यह कि
हो गया आती हूँ
वैसे ही पैर दुख रहें हों हमारे जैसे
लोगों के तो बोलने में ही डर लगता है कि अभी तो यह
नींद में हल्की-सी कराह रही थी ,बोलेंगे तो उठ कर
बैठ जाएँगी और अपने दर्द को दबाए
आपका पैर दबाने लगेगी ,बहुत-सी बातें होती हैं
जो उन्हें पृथ्वी के क़रीब लाती हैं ।
मैंने कई बार सोचा कि अगर ये सब मिल कर
पृथ्वी की तरह होना विषय पर विद्यालय खोल लें
तो सारे लोग कितने सुधर जाएँगें ,लेकिन यह संभव
नहीं है ,क्योंकि वे नहीं जानती हैं कि यह पृथ्वी की तरह होना
अंदर ही अंदर फसल की तरह है ,वृक्ष की तरह
उगता है और हमें छाया देता है ,यह तो सिर्फ कुछ लोग
ही जान पातें हैं ,वे नहीं जानती ।
प्रमोद बेड़िया