मातृ सदन की गंगा !


गंगा की निर्मलता, अविरलता और खनन माफिया से उसकी मुक्ति के लिए स्वामी शिवानंद के नेतृत्व में  हरिद्वार का मातृ सदन पिछले कई दशकों से संघर्षरत रहा है। इस सिलसिले में आश्रम ने कई कुर्बानियां दी हैं। गंगा को खनन माफियाओं से बचा लेने और उसकी सफाई के लिए एक कारगर नीति और क़ानून बनाने की मांग लेकर कुछ सालों पहले लगातार 114 दिनों से आमरण अनशन पर बैठे आश्रम के स्वामी निगमानंद को अस्पताल ले जाकर प्रशासन के संरक्षण में खनन माफिया द्वारा मार डाला गया। इस हत्या की जांच सी.बी.आई कछुए कर रही है। पिछले साल आश्रम में अनशन पर बैठे पर्यावरण के देश के सबसे बड़े योद्धाओं में एक, आई.आई.टी, कानपुर के पूर्व प्राध्यापक 86-वर्षीय डॉ जी.डी अग्रवाल उर्फ़ स्वामी सानंद की मृत्यु एक सामान्य घटना नहीं, राज्य और केंद्र सरकारों की उदासीनता और संवेदनहीनता का चरम था। गंगा के लिए अनगिनत बार तपस्या पर बैठे स्वामी शिवानन्द की हत्या की लगातार कोशिशें होती रही हैं। अभी आश्रम में एक युवा साध्वी पद्मावती 68 दिनों से और स्वामी आत्मबोधानंद 22 दिनों से आमरण अनशन पर बैठे हैं। आजतक प्रदेश या केंद्र सरकार का कोई भी प्रतिनिधि उनका हाल जानने या गंगा को माफियाओं के कब्जे से मुक्त करने का आश्वासन लेकर नहीं आया। क्या सरकार पर्यावरण इन दोनो योद्धाओं की भी मृत्यु की प्रतीक्षा कर रही है ?


स्पष्ट है कि निर्मल गंगा का संकल्प लेकर सत्ता में आई और गंगा की सफाई के नाम पर अरबों रुपए डकार जाने वाली केंद्र सरकार और माफियाओं से हर महीने करोड़ों की रकम उगाहने वाली उत्तराखंड की सरकार को गंगा की कितनी चिंता है। आम जनता को गंगा में अपने पाप धो लेने भर से मतलब है। उस मैली गंगा में जिसका पानी हमारे कुकर्मों से अब न पीने लायक रहा, न नहाने लायक और न खेतों की सिंचाई के ही लायक। किसी को यह चिंता नहीं कि अगर गंगा नहीं रही तो न उत्तराखंड रहेगा, न उत्तर प्रदेश, न बिहार और न बंगाल।  


इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी अपने बलिदानों से मां गंगा के लिए अलख जगाए रखने वाले मातृ सदन के परम पूज्य स्वामी शिवानंद सहित सभी स्वामियों और साध्वियों को हमारा प्रणाम ! Dhruv Gupt


लेखक सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी है