जज़्बात की लाश को
कारवां ले चला
धड़क रहे तृण-तृण
धड़क रहे पथ-कुपथ।
पूछ रहा हर कोई
यह क्या हुआ
जो मर गया
सांस-सांस थमी दिखी
गुजरा जिधर से कारवां।
कारवां हंस दिया
कहा एक-एक से--
ना कोई चिंता अब रही
ना गम रहा
खुशी रही
ना किसी का डर है अब
अब न कोई रोकेगा
अब न कोई टोकेगा।
बेफ़िक्री की मिसाल बन
चल दिए सब साथ-साथ
विजयी रथ का सारथी
थामें रस्सी हाथ में।
मुस्कुराए चांद-तारे
मुस्कुराई वसुन्धरा
कारवां के साथ-साथ
चल पड़ा सारा जहां।
डाॅ.चित्रलेखा