जामिया_में_अध्ययनरत_बेटी_से

#जामिया_में_अध्ययनरत_बेटी_स


क्या हुआ तुम पीजी स्टूडेंट हो
क्या हुआ तुम उन्नीस की हो गई हो
मैं जानता हूँ कि तुम अब भी खोजती हो दुलार


मुझे मालूम है तुम अब भी भीड़ में 
खोजती हो उंगलियां पापा की 
तेज़ हॉर्न बजाती बाइक देख
अब भी अकबका जाती हो 
कस्बे से निकलकर राजधानी में 
तुम संघर्ष कर रही हो कि पढ़ना है 
कुछ बनना है कि आगे और कम्पटीशन है


छत्तीसगढ़ से निकलकर जामिया के 
खुशनुमा कैंपस में हम कितना खुश थे
अकादमिक पढाई का माहौल पसन्द आया था
तुमने गिनाये थे अल्लुमनाई की सूची 
और मैं महात्मा गांधी, ज़ाकिर हुसैन के बारे में 
सोचकर कितना आल्हादित था 


तुम प्रतिदिन लाइब्रेरी जाती थीं 
उस दिन क्या हुआ कि तुम नहीं जा पाई 
तुम लाठियों की मार नहीं सह पाती बिटिया 
मैं जानता हूँ एक चिड़िया जितना दिल है तुम्हारा
तुम बच गईं लेकिन फिर देखता हूँ
वे बेटियां जो लाठियां भांजते वर्दीधारियों के आगे 
हाथ जोड़े जान सलामती की दुहाई दे रही हैं 
वह सब भी तो हमारी बेटियां हैं 
देश की बेटियां हैं जो पढ़ना चाहती हैं 


तुमसे बात करके कितना सुकून मिला था उस दिन
भले से उस रात तुम सब बची लड़कियां 
हॉस्टल में डरी-सहमी सुन रही थीं सिर्फ 
घड़ी की टिकटिक और बाहर से आती भ्रामक खबरें
आशंकित कि बीत जाए कैसे यह प्रलय की रात


मैंने कहा था तुम्हें कि जहां भी रहना  
झुंड में रहना और ऐसा ही सन्देश 
दे रहे थे तमाम लड़कियों के परिजन
टीवी और सोशल मीडिया से सार निकाल रहे थे हम
ऐसा ही कुछ तुम लोग भी कर रहे थे


तुम्हारा दिल जितना कोमल है न बेटा
मेरा भी तो ऐसा ही दिल है छोटा सा 
अकस्मात घबरा जाने वाला 
कि तुम्हारी दादी कहा करती थीं
लड़कियों जैसा डरपोक और शर्मीला हूँ मैं
तुम बहादुर बनो बेटी कि अब दुनिया 
वैसी हमदर्द न रहेगी जैसी पहले थी 


तुम बेहद क्रूर कालखण्ड में जी रही हो
कैसा भी कवच हो खतरा बना रहेगा
सावधान रहना और अपना ख्याल रखना।।
Anwar Suhail
(अनवर सुहैल साहब की कविता)