हमें क्या चाहिये सबसे बड़ा या सबसे अच्छा लोकतंत्र

 


आज से ठीक 115 साल पहले 18 फरवरी 1905 को लंदन में क्रांतिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा ने 'इंडियन होमरूल सोसाइटी' की स्थापना की थी। इस संस्था का लिखित संविधान था। भारत में स्वशासन और ब्रिटेन में रह कर भारत की आजादी के लिये संघर्ष करना इसका उद्देश्य था।


भारत अंग्रेजों का गुलाम था। भारत में विदेशी सत्ता का राज था। इसके बावजूद भारत के क्रांतिकारी ब्रिटेन में रहकर भारत की आजादी के लिये संस्था बना सकते थे, आजादी के लिये संघर्ष कर सकते थे और अपने विचारों का प्रचार-प्रसार कर सकते थे। यह सब आज से 115 साल पहले ब्रिटेन/इंग्लैंड में सम्भव था। ब्रिटेन एक साम्राज्यवादी देश था और अपने देश में पूंजीवादी औद्योगिकीकरण के लिये उसने दुनिया के अन्य कई देशों की तरह भारत को भी अपना गुलाम बना रखा था। इसके बावजूद वह इतना लोकतांत्रिक भी था कि आप उसी की धरती पर उसके विरुद्ध संगठन बना कर अपना प्रचार-प्रसार कर सकते थे।


दूसरी ओर महात्मा गांधी का देश #भारत है जहां सरकार द्वारा लागू किये गये किसी कानून का विरोध करने पर उसके नागरिकों पर पब्लिक सेफ्टी एक्ट (PSA) या नेशनल सिक्युरिटी एक्ट/ रासुका (NSA) लगा कर उन्हें जेलों में बन्द कर दिया जाता है जिसकी किसी न्यायालय में सुनवाई भी नहीं हो सकती..... या शांतिपूर्ण #पदयात्रा करने वाले सत्याग्रहियों पर यह आरोप लगा कर उन्हें जेलों में बन्द कर दिया जाता है कि उनकी पदयात्रा करने से कानून-व्यवस्था के भंग होने का खतरा है..... या उन सामाजिक कार्यकर्ताओं, प्रोफेसरों, लेखकों, पत्रकारों और वकीलों को, जो गरीब किसानों और आदिवासियों को न्याय दिलाने के लिये संघर्ष कर रहे हैं, यह आरोप लगा कर कि वे 'अर्बन नक्सल' हैं, गिरफ्तार कर जेलों में डाल दिया जाता है..... या उन छात्र नेताओं पर, जो वैचारिक रूप से वामपंथी हैं और सरकार विरोधी हैं, 'टुकड़े-टुकड़े गैंग' का आरोप लगा कर उन्हें देशद्रोही कहा जाता है और उनपर मुकदमें लाद दिये जाते हैं।


अब आप स्वयं यह तय करिये कि एक साम्राज्यवादी देश ब्रिटेन की तुलना में हमारा स्वतंत्र भारत कितना लोकतांत्रिक है? क्या हम सचमुच एक ऐसे लोकतांत्रिक देश के निवासी हैं जहां हर व्यक्ति को स्वतंत्रता पूर्वक अपने विचारों की अभिव्यक्ति की आजादी है? 


एक दूसरा उदाहरण पूंजीवाद के सिरमौर अमेरिका का भी है। वहां एक अकेला आदमी राष्ट्रपति भवन व्हाइट हाउस के ठीक सामने, जो कि दुनिया का सबसे सिक्योर्ड जोन है, शांतिपूर्वक बिना किसी भय के अपनी मांगों को लेकर धरने पर बैठ सकता है। लेकिन दुनिया के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र की सबसे शक्तिशाली और कुशल पुलिस उसे छूती तक नहीं है। 


इसके विपरीत हमारे यहां तो यदि कोई अकेला व्यक्ति प्रधानमंत्री निवास 'लोक कल्याण मार्ग' या गृहमंत्री निवास 'कृष्णमेनन मार्ग' के सौ मीटर के दायरे के बाहर भी धरने पर बैठने की कोशिश करेगा तो उसे 'राजद्रोही' ठहरा कर जेल में डाल दिया जाएगा। हमारे यहां की पुलिस 'स्कॉटलैंड यार्ड' से भी अधिक कार्य कुशल है जो एक विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी में घुस कर छात्र-छात्राओं को न सिर्फ बेरहमी से पीटती है बल्कि छात्रओं के नाजुक निजी अंगों (Praivet Parts) पर भी निर्दयतापूर्वक प्रहार करती है, छात्रों की आंखें फोड़ देती है और उनके हाथ-पैर तोड़ देती है, लेकिन न तो देश का मानवाधिकार आयोग, न राष्ट्रीय महिला आयोग और न सुप्रीम कोर्ट इस अमानवीयता का स्वतःसंज्ञान लेता है। इसके बावजूद हम बेशर्मी के साथ यह कहते हैं कि हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा #लोकतंत्र है। सिर्फ आबादी अधिक होने से ही कोई सबसे बड़ा लोकतंत्र नहीं हो जाता है। बल्कि सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के बजाय सबसे अच्छा लोकतंत्र होने में ही गर्व की अनुभूति होना चाहिये।


प्रवीण मल्होत्रा


लेखक राजनीतिक विश्लेषक है