एक लड़ाई आधी-अधूरी !

देश में कैंसर रोगियों की बढ़ती संख्या के मद्देनज़र विख्यात प्राकृतिक चिकित्सक और चिकित्सा लेखक डॉ अबरार मुल्तानी ने सरकार की कैंसर नीति के बारे में कुछ बहुत ज़रूरी सवाल उठाए हैं जिनपर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। सरकारी विज्ञापनों को देखें तो महसूस होगा कि कैंसर का एकमात्र या उसका सबसे बड़ा कारक तम्बाकू है। यह एक अर्द्धसत्य है। कैंसर पर अबतक हुए शोध बताते हैं कि तम्बाकू कैंसर की सबसे छोटी वजह है। कैंसर रोगियों की कुल संख्या का महज़ 5 प्रतिशत ही तम्बाकू सेवन का आदी पाया गया हैं। कैंसर के 95 प्रतिशत मामलों का तम्बाकू से कोई लेना-देना नहीं होता। मेरा व्यक्तिगत अनुभव भी कुछ ऐसा ही है। कुछ साल पहले अपने कैंसरग्रस्त दिवंगत बड़े भाई के इलाज़ के क्रम में मैंने महीनों तक मुम्बाई के टाटा और जसलोक अस्पतालों की खाक छानी थी। इस दौरान सैकड़ों मरीजों से मेरी बातचीत हुई। उनमें इक्का-दुक्का लोग ही तम्बाकू के आदी मिले। मरीज़ों में एक बड़ी संख्या स्त्रियों और बच्चों की थी जिनका तम्बाकू से दूर का भी रिश्ता नहीं था। आधुनिक शोधों के अनुसार कैंसर के 95 प्रतिशत मामलों की जड़ में फसलों में डाली जाने वाली रासायनिक खाद, कीटनाशक, आर्सेनिक और रासायनिक कचरे से प्रदूषित पानी और जहरीली हवा है। लीवर और आहार नली के कैंसर में शराब की भी भूमिका होती है। तम्बाकू को हतोत्साहित करना तो ठीक है, लेकिन अगर सरकार का सारा ज़ोर तम्बाकू पर ही है तो इसका अर्थ है कि वह असली मुद्दों पर पर्दा डाल रही है। कैंसर के ख़िलाफ़ अगर ईमानदारी से कोई अभियान चलाना है तो सरकार का सबसे ज्यादा ज़ोर रासायनिक खाद और कीटनाशक से मुक्त जैविक खेती पर होना चाहिए। इसके लिए यह ज़रूरी कर दिया जाय कि किसानों के लिए चलाई जाने वाली किसी भी योजना का लाभ सिर्फ उन किसानों को मिले जो जैविक खेती करते हैं।पीने का शुद्ध पानी और सांस लेने को शुद्ध हवा कैंसरमुक्त समाज की दूसरी बड़ी आवश्यकता है। कहना न होगा कि आज़ादी के सत्तर साल बाद भी इस दिशा में सरकार के प्रयास आधे-अधूरे और नाकाफ़ी हैं। कैंसर की एक और वजह शराब को सरकारें अपने राजस्व के लिए प्रोत्साहित करती ही रही हैं।



कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के बढ़ते खतरों से लड़ने के लिए आज सरकार के स्तर से एक समग्र कैंसर नीति की ज़रूरत तो है ही, हम नागरिकों को भी इस बेहद ज़रूरी लड़ाई में अपनी भूमिका शिद्दत से निभानी होगी।


ध्रुव गुप्त



लेखक  सेवा निवृत आई पी एस अधिकारी है