दिल्ली चुनाव और शाहीन बाग


हाल ही में संपन्न हुए दिल्ली विधान सभा चुनावों में यदि कोई एक मुद्दा पूरे चुनाव प्रचार पर हावी रहा तो वह था शाहीन बाग। चुनाव प्रचार के आखिरी 10 दिनों में तो ऐसा लगा कि शाहीन बाग ही राष्ट्रीय मुद्दा है और यही देश की सबसे बड़ी समस्या है। बीजेपी नेताओं की ओर से चुनाव प्रचार के दौरान कहा गया कि ‘अगर इन लोगों को (शाहीन बाग) नहीं रोका गया तो ये लोग आपके घरों में घुसकर माँ-बहनों का रेप करेंगे’। एक केंद्रीय मंत्री द्वारा चुनावी सभा में नारे लगवाए गए ‘देश के गद्दारों को गोली मारो सालों को’ और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने इन सबसे आगे बढ़कर एक चुनावी सभा में कहा कि ‘मित्रे, बटन इतने गुस्से में दबाना कि करंट शाहीन बाग में लगे’। इस बीच एक केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि शाहीन बाग एक विचार है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए कहा कि ‘जामिया और शाहीन बाग में प्रदर्शन कोई संयोग नहीं बल्कि एक प्रयोग है और इस मानसिकता और अराजकता को रोका जाना जरूरी है’ साथ ही प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि ‘शाहीन बाग में कुछ लोग तिरंगे और संविधान की आड़ में देश विरोधी गतिविधियाँ कर रहे हैं और इन प्रदर्शनों के पीछे एक राजनीतिक षड्यंत्र है जिसका उद्देश्य देश के सौहार्द को खराब करना है ये लोग अदालतों की बात भी सुनते और संविधान की बात करते हैं’।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या शाहीन बाग का मुद्दा उठाकर भारतीय जनता पार्टी को दिल्ली विधान सभा चुनावों में फायदा हुआ या नुकसान हुआ। हाल ही में गृहमंत्री अमित शाह जो कुछ समय पहले तक अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी थे ने सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार किया है कि ‘उनकी पार्टी के नेताओं को गोली मारो या भारत-पाकिस्तान मैच जैसे नफरत भरे भाषण नहीं देने चाहिए थे और इन बयानों से पार्टी को नुकसान हुआ और पार्टी को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। इसके चलते पार्टी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकी’। अमित शाह ने यह भी स्वीकार किया कि ‘दिल्ली चुनावों के बारे में उनका आकलन गलत साबित हुआ क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि पार्टी को 45 सीटें मिलेंगी जो एकदम गलत था’।
पर साथ ही अमित शाह ने यह भी जोड़ा कि बीजेपी जीत या हार के लिए चुनाव नहीं लड़ती बल्कि चुनावों के मार्फत अपनी विचारधारा के प्रचार-प्रसार पर भरोसा करती है।
यहां सवाल यह उठता है कि देश और दुनिया सबसे बड़ी लोकतांत्रिक पार्टी होने का दावा करने वाली बीजेपी के लिए चुनाव जीतने के लिए प्रचार के किसी भी हद तक जाना कितना जायज है? सवाल यह भी है कि चुनाव जीतने के लिए चाहे जितने गंदे और जहरीले बयान देने के बाद भी यह पार्टी दूसरे दलों से अलग और चाल, चरित्र, चेहरे वाली पार्टी होने का दावा कैसे कर सकती है? दूसरा यह कि ऐसे बयानों से देश की एकता और अखण्डता कमजोर नहीं होती।
आखिर शाहीन बाग क्या है? वहां ऐसा क्या हो रहा है जिससे देश कमजोर हो रहा है या वहां देश विरोधी गतिविधियाँ हो रही हैं जैसा प्रधानमंत्री को लगता है? इन चुनावों में बीजेपी नेताओं के बयानों को देखकर ऐसा मालूम होता था मानो शाहीन बाग हिन्दुस्तान का नहीं पाकिस्तान का हिस्सा हो और वहां देशद्रोही आतंकवादी गतिविधि हो रही हो।
शाहीन बाग में महिलायें जोकि भारतीय नागरिक हैं गत 15 दिसम्बर से नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए), 2019 के खिलाफ धरने पर बैठी हैं। वह इस नये नागरिकता कानून को सांप्रदायिक और भेदभाव करने वाला कानून मानती हैं और सरकार से उसे वापस लिये जाने की मांग कर रही हैं। शाहीन बाग की तर्ज पर लखनऊ, इलहाबाद, बनारस, पटना, कोलकाता, मुम्बई, हैदराबाद और देश भर में डे़ढ़ सौ ज्यादा स्थानों पर प्रदर्शन हो रहे हैं। यह प्रदर्शन पूरी तरह से शांतिपूर्ण हैं और संविधान के दायरे के तहत किये जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2012 में बाबा रामदेव बनाम दिल्ली पुलिस मुकदमें में फैसला सुनाते हुए एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है जिसमें शांतिपूर्ण विरोध को एक संवैधानिक हक करार दिया गया है अदालत ने अपने इस फैसले में कहा है ‘अभिव्यक्ति की आजादी, शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के लिए लोगों को इकट्ठा करना एक लोकतांत्रिक व्यवस्था की बुनियादी विशेषतायें हैं। हम जैसे लोकतांत्रिक देश के नागरिकों का यह अधिकार है कि सरकार के किसी भी फैसले या कदम के खिलाफ वे आवाज उठायें, बल्कि सरकार के ऐसे किसी भी कदम के खिलाफ अपनी नारजगी जताने का उन्हें पूरा अधिकार है, जो सामाजिक या राष्ट्रीय महत्व रखता हो। सरकार को (नागरिकों के) इस अधिकार का सम्मान करना, बल्कि उसे तो इस हक को प्रोत्साहित करना चाहिए’।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद शाहीन बाग के शांतिपूर्ण प्रदर्शन का विरोध करने वाले लोगों को यह बात समझ लेनी चाहिए कि वहां बैठी महिलाएं उसी भारतीय संविधान के तहत यह धरना प्रदर्शन कर रही हैं जिसका अधिकार उन्हें संविधान ने दिया है और जिसकी शपथ लेकर केंद्र सरकार ने लोग मंत्री और प्रधानमंत्री के पद पर बैठे हैं। वह शपथ तो यह लेते हैं कि ‘राग, द्वेष और अनुराग के बिना देश के सभी नागरिकों के साथ बराबर का व्यवहार करेंगे’ लेकिन आचरण उसके विरोध में करते हैं।
दिल्ली विधान सभा चुनावों में 53 प्रतिशत से ज्यादा मतदाताओं ने शाहीन बाग को लेकर किये गये भारतीय जनता पार्टी के चुनावी प्रोपेगैण्डे को पूरी तरह से नकार दिया है और केवल 38 प्रतिशत मतदाताओं ने भारतीय जनता पार्टी का समर्थन किया है। इन चुनावी नतीजों की इबारत साफ है और जिसे गृहमंत्री अमित शाह ने शायद ठीक ढंग से पढ़ा है कि उनकी पार्टी के नेताओं को नफरत भरी भाषा नहीं बोलनी चाहिए थी जिसकी वजह से पार्टी को बड़ी भारी कीमत चुकानी पड़ी है।
 
कुरबान अली
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और पिछले 35 वर्षों से प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया से जुड़े रहे हैं।)