द टाइम ऑफ़ ऑरेंज टॉवेल्-पढ़ियेगा ज़रू

 


द हिन्दू में छपी इस आज के पुलिस ऑफिसर के लिए ये आर्टिकल सबको पढ़नी चाहिए इसलिए हिंदी में भी लिख दिया है।


फ़र्ज़ करिए के आज आप नार्थ इंडिया के एक हाई रैंक पुलिस ऑफिसर हैं।


एक तेज़ होनहार स्टूडेंट, जो पढ़ाई और खेल दोनों में अव्वल, जिसे लैंग्वेज, साइन्स और इकोनॉमिक्स में भी उतनी ही रूची।


स्कूल कॉलेज में अच्छा करने के बाद आप पब्लिक एक्सअम्स में बैठे।
अब आपको समाज के लिए भी कुछ करना है, एक शानदार नौकरी का रुतबा भी संभालना है और ज़िन्दगी भी जीनी है। तो आपने आईपीएस का इम्तेहान पास कर लिया और ट्रेनिंग में आ गए। अब आप ग्रेजुएट हुए और स्टेट कैडर में शामिल।


अब बारी थी वर्दी की जिसके बाद आपने तिरंगे को सलूट किया और कॉन्स्टिट्यूशन पढ़ कर शपथ ली।
ये एक गर्व करने की बात और गर्व वाला दिन रहा आपके लिए।


जैसे जैसे दिन गुज़रा आप ऊंच नीच से गुज़रते रहे। आप एक अच्छे, तेज़ और दिलेर ऑफिसर साबित हुए।
कहीं एक दो केसेस ग़लत भी हुईं जैसे कस्टडी में दो चार मौत हो गई जो सीधे आपकी ग़लती न भी हो शायद सबोर्डिनेट्स की ग़लती मगर इस टीम वर्क के नज़रिए से संभाल लिया गया।
आपने आपने लड़कों के लिए संभाल लिया, बड़े ऑफिसर्स ने आपके लिए संभाल लिया।
आपने कुछ अच्छे और जुझारू केसेस भी सॉल्व किए।


अपनी अपनी ज़रूरतों के हिसाब से अब आप और आपके ऑफिसर अपने अपने हिस्से की रिश्वत लेते रहे, मगर कोई घातक हफ़्ते की तरह नहीं।


अब मौजूदा सरकार और सियासत के हिसाब से आपको पता है पराठे के किस तरफ़ बटर है तो आप उसकी सुनते हैं जिसकी सरकार है।
बैलेंस बनाते बनाते वक़्त बीता और सियासत के पहिए ने एक चक्कर और लगाई।
अब जहाँ मुख्यमंत्री आपको हिदायत दें कि बिना ट्रायल के क्रिमनल को गोली मारो।
आप ज़रा सोचते हैं फिर समझते हैं कि दरअसल उन्हें भी बॉडीज़ काउंट चाहिए एक्स्ट्रा जुडिशल किल्लिंगस भी तो एक टार्गेट है।


तब शुरू होती है 'द टाइम ऑफ़ द टॉवेल्स'


अब सब अच्छा बुरा जानते हुए भी आप अपने बॉस का कहा मानते हैं।
अब एनकाउंटर बढ़ता है और जुर्म पहले से ज़्यादा मगर समाज का ताक़तवर तबका ख़ुश है और मुनाफ़े में, तो जस्टिस और बोरिंग लीगालिटीस को दरकिनार देखिए।
सरकार को रिप्लेसमेंट का कोई ख़ौफ़ भी नहीं, और अब आपकी ड्यूटी पहले से ज़्यादा रात और दिन दोनों।


अब मुख्यमंत्री का ट्रैवेल ज़्यादा मतलब आप का काम बहुत ज़्यादा।


अब आपको ये देखना की जहाँ भी वो पहुँचें वहाँ उनकी पसंद की टॉवल है या नहीं, उनके पसंद के रंग की टॉवल हाज़िर हों।


'केमिकल ऑरेंज'।


रंग से समझौते पर कई दफ़े नौकरियाँ भी गई।


'ड्रीमज़ इन ऑरेंज'


अब आपका प्राइम टारगेट मुसलसल इनोसेंट मुस्लिम्स को शूट करना जो नमाज़ से लौट रहे हों, या मैदान या स्कूल या कारख़ाने से गुज़र रहे हों।
अब आप पावर और पॉवरफुल लोगों की मदद से मुस्लिम इलाक़ों में तबाही मचाने, लूटने, इज़्ज़त और दौलत, उनको डराने और मारने के लिए निकल पड़े हैं


अब आप शिकारी बना दिये गए हैं, अब आप सिर्फ़ शिकार ढूँढते हैं।


गंदा है पर धंधा है, आप कभी कदार ठहरते हैं सोचते हैं, बहुत हुआ मगर फिर


आप नहीं तो कोई और सही, ये तो चलता रहेगा तो मैं ही सही।


आपको मना करने का अंजाम पता है तो आप मना कैसे करेंगे।


फिर एक रोज़ आपके भयानक ख़्वाब में ये भयानक नहीं होगा कि आपने जवान बेगुनाह लोगों को बेवजह मारा,


ये भी भयानक नहीं होगा कि आपने उनके बदन, या उस लाश को ज़बरदस्ती जलाया जिसे दफ़नाना था,


आपको डर, ख़ौफ़ और भयानक ये लगेगा की


आपने टॉवल का सही रंग रखवाया है न


मुख्यमंत्री के गेस्ट हाउस में पहुँचने के वक़्त टॉवल सलीक़े से तह में रखी हुई है या नहीं


अपने बिस्तर पर इस भयानक मंज़र में ऑरेंज टॉवल से अपना पसीना पोछते हुए


शायद आपको एहसास हो


कि वर्दी पहन कर, तिरंगे को सलूट कर, संविधान की कसम खाकर यही वो जगह है जहाँ आप पहुँचे हैं इन द रिपब्लिक ऑफ इंडिया एस आ सिनियर पुलिस ऑफिसर