चेटक सर्कल


डाॅ. हेमेन्द्र चण्डालिया


                                                         देषद्रोही घोषित होने के फायदे
जब से अंधभक्तों से देशद्रोही होने का प्रमाण पत्र मिला है, जीवन बहुत सुरक्षित हो गया है। अब लोग हाथ मिलाने से बचने लगे हैं। इससे कोरोना वायरस से संक्रमण का खतरा टल गया है। दूसरा फारयदा यह हुआ है कि अब भक्तों के प्रति जो भय था वह समाप्त हो गया है। भक्तों के पास भी इससे बड़ी कोई गाली नहीं थी। एक बार दे चुके, अब क्या देंगे? जब तीन-तीन सांसद और केन्द्रीय मंत्री तक केजरीवाल को आतंकवादी कह सकते हैं तो फिर भक्त लोग किसी नागरिक को देशद्रोही कहें तो कौन बड़ी बात है। मगर इस सारी बहस में प्रकाश जावड़ेकर का सामान्य ज्ञान देखकर धन्य हो गए। कहते है कि अराजकतावाद और आतंकवाद एक ही बात हैं। बेचारे मानव संसाधन मंत्रालय को ऐसे ही गुणमंत्री मिलते रहे तो भारत को विश्व गुरू बनने से कोई नहीं रोक सकता। पहले स्मृति जी आई, फिर जावड़ेकर जी और अब निशंक जी। भक्त जन ऐसे भी हैं जो गाय जो जानवर नहीं, आॅक्सीजन प्लाॅट मानते हैं और परमाणु हमले के समय सारे शरीर पर गोब लपेट कर विकिरण से बचने की सलाह देते हैं। भारत भूमि ऐसे शासकों से धन्य हो गई। अब चाहे विकास दर घटकर एक प्रतिशत भी आ जाए तो गम नहीं, ऐसी मेघावी प्रतिभाएं जनता ने चुन कर संसद में भेजी हैं, हमारा दूसरे क्या बिगाड़ेंगे?
गोली मार भेजे में...
इस समय देश की सबसे बड़ी समस्या यह है कि अभी भी कुछ लोग है, बल्कि कई लोग हैं जो सोच लेते हैं। दुनिया भर के टीवी चैनल, बोगस बहसों, व्हाट्सअप की अनियंत्रित झूठी पोस्ट्स और सस्ते सामान बेचने वाले सेल्समैन की तरह व्यवहार करने वाले झूठे राजनीतिज्ञों की चीख-चीखकर कहीं बातों के बावजूद लोग सोच रहे है। लोग सोच रहे हैं शिक्षण संस्थाओं में हजारों की संख्या में खाली पड़े अध्यापकों के पदों के बावजूद, लोग सोच रहे हैं विज्ञापनों और पेड न्यूज से अटे अखबारों के बावजूद, निरन्तर महंगी होती जाती शिक्षा जो आम जन की पहुँच से दूर होती जा रही है, के बावजूद, सच बोलने पर जेल में डाल दिए जाने के खतरों के बावजूद लोग सोच रहे हैं।
सोच रही हैं वे महिलाएं भी जिन्हें पर्दो और दीवारों में कैद कर हमारे सत्ताधीश खुश हो रहे थे कि ये तो क्या सोचेंगी? मगर अब महिलाएँ भी सोच रहे हैं, लड़कियाँ और बच्चे भी। सोचना ही सबसे बड़ा खतरा है। इसलिए कोई पिस्तौल लेकर हजारों विद्यार्थियों की भीड़ में आता है और बिना सोचे समझे गोली चला देता है। उसे इस बात से नहीं मतलब की गोली किसे लगेगी। उसे हर सोचने वाले से नफरत है, इसलिए वह बिना सोचे गोली चला देता हैं।
अब क्या करें?
लो भाई अब मंदिर निर्माण का ट्रस्ट भी बन गया। अब क्या करें? 370 गई, ट्रिपल तलाक गया, मंदिर का मामला खत्म। अब क्या करें। सर्वे तो फिर भी केजरीवाल के पक्ष में ही परिणाम बता रहे है। चायवाले का नाटक भी चल गया, सीएए और एनआरसी की भी हवा निकल गई। मुस्लिम भाईयों ने वैसी प्रतिक्रिया नहीं दी। अब क्या करें? दिल्ली की हार का ठीकरा किसके सिर फोडेंगे, कौन हो जो अपनी जिम्मलेदारी लेगा? दिल्ली में जो बोला जा रहा है, तीसरे ही दिन उसका झूठ पकड़ा जा रहा है। चैनल तो सारे खरीद लिए पर बोलेंगे क्या? जुमले भी सारे खत्म हो गए। प्रशान्त किशोर तो जेडीयू से भी निकाले जा चुके है। सुषमा जी, जेटली जी और पर्रिकर नहीं रहे। अब आइडिया कौन देगा? बहुत टेंशन है। मोटा भाई और प्रधानमंत्री जी को हंसते-मुस्कराते देखे ज़माना हो गया है? बड़े तनाव में दिखाई देते है। राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखण्ड के बाद दिल्ली भी नाउम्मीद करती दिख रही है। अब आगे क्या करें?