असम में एनआरसी ------------------------


100 मौतें और 19 लाख विदेशी भारतीयों 
की कहानियां आपने सुनी हैं? 


असम में एन.आर.सी. की फाइनल लिस्ट जारी हुई. एक परिवार में मां का नाम एनआरसी में आ गया. पिता और दो बेटों का नहीं आया. पिता को डिटेंशन कैंप भेज दिया गया. पिता की कुछ दिन बाद सितंबर में डिटेंशन कैंप में ही मौत हो गई. बेटे से पूछा गया कि अब क्या करोगे? उसने कहा, 'सरकार को जो ठीक लगेगा, वह करेगी'.


इसी तरह अक्टूबर में 70 वर्षीय फालू दास की डिटेंशन सेंटर में मौत हो गई. सरकार ने कहा कि वे बीमारी से मरे हैं. परिवार ने उनकी बीमारी के बारे में नहीं बताया था. गुस्साए परिवार ने उनका शव लेने से इनकार कर दिया. असम में खून के आंसू रोते हजारों परिवार हैं और वे वहां के स्थानीय हिंदू हैं.


अंग्रेजी अखबार 'द टेलीग्राफ' के मुताबिक, हाल ही में संसद सत्र के दौरान केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने राज्यसभा में बताया था कि “असम के छह डिटेंशन सेंटर में 988 'विदेशियों' को रखा गया है. इन कैंपों में 28 लोगों की मौतें हुई हैं, लेकिन ये मौतें किसी उपचार की कमी, दबाव या डर के चलते नहीं हुई हैं, बल्कि बीमारी की वजह से हुई हैं.” 


अखबार के मुताबिक, मानवाधिकार समूह सिटीजन फार जस्टिस का आंकड़ा है कि अलग अलग वजहों से 100 लोगों की मौत हो चुकी है. कुछ की कैंप में मौत हुई, कुछ ने आत्महत्या कर ली. सिटीजन फार जस्टिस यह आंकड़ा 2011 से जुटा रहा है. 


ऐसे तमाम परिवार हैं जिनमें से कुछ का नाम एनआरसी में है और बाकी परिजन बाहर हैं. पूर्व राष्ट्रपति के परिवार और रिटायर्ड फौजी के परिवार की कहानियां आपने सुनी ही होंगी जिन्हें एनआरसी में जगह नहीं मिल पाई और वे विदेशी घोषित हो गए. 


असम के स्थानीय लोग, आदिवासी, गरीब, हिंदू और मुसलमान हर वर्ग और समुदाय के लोग वहां नागरिकता रजिस्टर में जगह नहीं बना सके, क्योंकि उनके पास पुराने कागज नहीं थे.


जब पूरे देश में सीएए और एनआरसी के विरोध में आग धधक रही है, नॉर्थईस्ट टुडे ने रिपोर्ट किया कि सरकार 'मॉस डिटेंशन कैंप' बनवा रही है. अखबार के मुताबिक, असम में दस डिटेंशन कैंप बन रहे हैं. अभी लिस्ट से बाहर सभी लोगों को कैंप नहीं भेजा गया है, लेकिन खबरें पहले ही आने लगी हैं कि इन कैंपों में लोगों को अमानवीय हालत में रखा जा रहा है.


असम में 19.6 लाख लोग एनआरसी से बाहर हैं. एक अगस्त को लिस्ट आने के बाद कहा गया कि लिस्ट से बाहर रह गए लोगों के पास 120 दिनों का मौका है. फॉरेन ट्रिब्यूनल में अपील कर सकते हैं. इसके बाद कोर्ट भी जा सकते हैं. अगर इस प्रक्रिया में वे खुद को भारतीय साबित नहीं कर पाए तो डिटेंशन सेंटर भेजा जाएगा. एक सेंटर असम के गोलपाड़ा में है. इसी तरह के 10 सेंटर बनाए जा रहेे हैं. लेकिन चूंकि एनआरसी में करीब 13 लाख हिंदू हैं और करीब छह लाख मुसलमान. इसके चलते बीजेपी बैकफुट पर आ गई. 


दूसरी ओर असम की जनता की मांग थी कि सभी विदेशी भगाए जाएं, इसलिए वहां की जनता अब भी विरोध में हैं क्योंकि सरकार हिंदू मुसलमान छांट रही है. असम की पूरी एनआरसी प्रक्रिया फेल हो गई. अब सरकार कह रही है कि पूरे देश में यही करेंगे. आप लाइन में लगो, अपनी नागरिकता साबित करो और चाहे लाइन में लगकर मरो या डिटेंशन सेंटर में मरो. असम में घुसपैठ की समस्या को बीजेपी ने बिना वजह राष्ट्रीय समस्या बनाकर लाइन में खड़ा करने की तैयारी कर ली है.


पूर्व आईपीएस अधिकारी हर्षमंदर ने पिछले साल इन कैंपों का दौरा किया था. लौटकर उन्होंने कहा था, जब वहां मौजूद महिलाओं को लगा कि कोई उन्हें सुनना चाहता है तो वे चीखकर रोने लगीं. वहां पर स्थायी दुख का माहौल था. इन कैंपों में लोगों को अमानवीय हालत में रखा जा रहा है. लोगों को उनके परिवारों से अलग कर दिया गया है. वे कोई काम नहीं कर सकते हैं. उन्हें पेरोल नहीं मिल सकती. 


हर्षमंदर को मानवाधिकार आयोग ने स्पेशल मॉनिटरिंग के लिए नियुक्त किया था. लेकिन उनकी सिफारिश पर कोई कार्रवाई नहीं हुई तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया. 


संविधान का अनुच्छेद 21 किसी भी भारतीय या विदेशी व्यक्ति को जीवन का अधिकार सुनिश्चित कराता है. क्या आप भारत को ऐसा देश बनाना चाहते हैं कि जहां उसके संविधान से यह अधिकार निकाल दिया जाए और कुछ लोग जानवरों की तरह पिंजरे में बंद कर दिए जाएं?


असम में जो तबाही पेश आई है, पूरे देश में वह क्यों होनी चाहिए? कौन है जो लोगों की बर्बादी की जवाबदेही लेगा? 


(फोटो: टाइम्स आफ इंडिया के वीडियो से है. प्रमुख सूचनाएं एनडीटीवी, टाइम्स आफ इंडिया, द टेलीग्राफ और नॉर्थईस्ट टुडे से हैं.)


@ Krishna Kant