अपराध बोध ! ----------------- अपनी जवानी के 14 वर्ष संघ को दिए 


गांधी के सत्याग्रह, उपवास और स्वतंत्रता के लिए किये गए संघर्ष को ड्रामा कहकर गांधी को अपमानित करना, एक तरह से, गांधी को पढ़े और समझे बिना उपजाई गई वो नफरत है जिसकी बारूद से बनी गोलियों में से तीन गोलियां सबसे पहले गांधी केसीने पर दागी गईं और उनके शरीर को समाप्त किया गया।उसके बाद ,दाभोलकर, गौरी लंकेश आदि भी उसी बारूद से बनी गोलियों के निशाने बने और ये गोलियां अब सांकेतिक रूप से भी,कभी खिलौना तमंचे से गांधी की तस्वीर पर तो कभी संघी कुसंस्कारों से कुसंस्कारित,प्रज्ञा ठाकुर और अनंतकुमार हेगड़े जैसे गांधी विरोधियों के जहरीले कुवचनों से और कभी 'जयश्रीराम'के नारों के साथ शाहीनबाग के गांधीवादी अहिंसक सत्याग्रहियों पर बरसाई जा रही हैं।इन्हें क्या मालूम कि गांधी एक मात्र ऐसे महान भारतीय महापुरुष हैं जिनसे प्रेरित होकर मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला जैसे सत्याग्रहियों ने अपने अपने देशों में होने वाले सियासती जुल्मों के खिलाफ अहिंसक लड़ाइयां लड़ीं और अल्बर्ट आइंस्टीन जैसे महान वैज्ञानिक ने इन्हें धरती पर जन्म लेने वाला हाड़मांस का ऐसा व्यक्ति कहा जिसके अस्तित्व पर आने वाली पीढ़ियों को शायद विश्वास ही न हो कि कोई इतना महान अहिंसक सत्याग्रही भी कभी इस धरती पर पैदा हुआ होगा।इन मूर्खों को ये भी पता नहीं होगा कि 1942 का 'अंग्रेजों भारत छोड़ो'आंदोलन, 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से भी कई गुना बड़ा स्वतंत्रता संग्राम था।


मुझे तो गांधीजी के प्रति आरएसएस के ऐसे नफरत से सराबोर जहरीले ज्ञानहीन नजरिये का इलहाम 1975-77की अपनी 21माह लंबी जेलयात्रा के दौरान ही हो गया था और उसके बाद से लेकर अब तक हो रही,संघी अंधभक्तों की काली करतूतें देखकर, सुनकर और पढ़कर,इस पछतावे की आग मुझे जलाती ही चली जा रही है कि मेरे किन पूर्वजन्म के पापों की मुझे ये सजा मिली कि मैंने अपनी जोशीली जवानी के कीमती 14 बरस इन संघियों द्वारा परोसी गई 'राष्ट्रवाद'और'देशभक्ति' नामधारी जहरीली और गाँधीविरोधी विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए बर्बाद कर दिये।बापू,मुझे क्षमा करो!


@ Vinod Kochar
★ आर एस एस के समर्पित स्वयंसेवक के रूप में साथी विनोद कोचर को आपातकाल में जेल जाना पड़ा था l आश्चर्य की बात है कि जेल से रिहा होने के बाद वे आर एस एस के उतने ही बड़े विरोधी बनकर निकले l नरसिंहगढ़ जेल में समाजवादी नेता मधु लिमये और शरद यादव के साथ वे जेल में थे l जेल में संघ की विचारधारा पर गहन विचार मंथन के बाद वे इस फैसले पर पहुंचे l