अंतरराष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस -


मातृभाषा किसी भी इंसान के लिए गर्व की वस्तु होती है. मातृभाषा उसे अपने हाव, भाव और अपने आप को दूसरों के सामने रखने का हथियार प्रदान करती है. मातृभाषा एक ऐसी भाषा होती है जिसे सीखने के लिए उसे किसी कक्षा की जरुरत नहीं पड़ती. मातृभाषा उसे स्वत: ही अपने परिजनों द्वारा उपहार स्वरुप मिलती है. जन्म लेने के बाद मानव जो प्रथम भाषा सीखता है उसे उसकी मातृभाषा कहते हैं. मातृभाषा, किसी भी व्यक्ति की सामाजिक एवं भाषाई पहचान होती है. लेकिन मानव समाज में कई दफा हमें मानवाधिकारों के हनन के साथ-साथ मातृभाषा के उपयोग को गलत भी बताया जाता है. ऐसी ही स्थिति पैदा हुई थी 21 फरवरी 1952 को बंग्लादेश में. दरअसल 1947 में भारत के विभाजन के बाद पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में उर्दू को राष्ट्रीय भाषा घोषित कर दिया था. लेकिन इस क्षेत्र में बांग्ला और बंगाली बोलने वालों की अधिकता ज्यादा थी. और 1952 में जब अन्य भाषाओं को पूर्वी पाकिस्तान में अमान्य घोषित किया गया तो ढ़ाका विश्वविद्यालय के छात्रों ने आंदोलन छेड़ दिया. आंदोलन को रोकने के लिए पुलिस ने छात्रों और प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलानी शुरु कर दी जिसमें कई छात्रों की मौत हो गई. अपनी मातृभाषा के हक में लड़ते हुए मारे गए शहीदों की ही याद में ही आज के दिन को स्मृति दिवस के रुप में भी मनाया जाता है.


आज विश्व में ऐसी कई भाषाएं और बोलियां है जिनका संरक्षण आवश्यक है. लोकभाषाओं की चिंता इसलिए ज़रूरी है कि ये हमारी विरासत का एक भाग हैं और हमारी थाती हैं और इनमें जो भी कुछ सुंदर और श्रेष्ठ रचा जा रहा है, उसे सहेजकर रखा जाना चाहिए. इसीलिए यूनेस्को महासभा ने नवंबर 1999 में दुनिया की उन भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए साल 2000 से प्रति वर्ष 21 फ़रवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने का निश्चय किया जो कहीं न कहीं संकट में हैं.


किसी भी राष्ट्र या समाज के लिए अपनी मातृभाषा अपनी पहचान की तरह होती है. इसको बचाकर रखना बेहद आवश्यक होता है. अगर हम भारत की बात करें तो यहां हर कुछ कदम पर हमें बोलियां बदलती नजर आएंगी. हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा जरुर है लेकिन इसके साथ ही हर क्षेत्र की अपनी कुछ भाषा भी है जिसे बचाकर रखना बेहद जरुरी है.


आज का दिन हम सब अपनी-अपनी मातृभाषा के नाम करते हैं फिर चाहे वह हिंदी हो या मराठी भोजपुरी या बांग्ला. हमें अपनी मातृभाषा पर गर्व होना चाहिए.


@  Chandra Sheela Gupta