मार्टिन लूथर किंग की भारत यात्रा

अहिंसा धाम की यात्रा


मार्टिन लूथर किंग 10 फरवरी 1959 को भारत पहुंचे. वे पूरे एक महीने यानी 10 मार्च तक भारत में रहे. किंग जूनियर ने अपनी इस यात्रा को अपने जीवन का आंखे खोलने वाला सबसे बड़ा अनुभव बताया था.
इस दौरान अक्सर किंग जूनियर शहरों में सुबह की सैर के लिए सड़कों पर निकल जाते और कोई न कोई उन्हें पहचान ही जाता, जो आकर उनसे पूछ लेता- ‘आप मार्टिन लूथर किंग ही हैं न?’ किंग ने लिखा है कि भारत में जो प्रेम उन्हें मिला उसमें उनके त्वचा के रंग ने एक अहम भूमिका निभाई. लेकिन इस भाईचारे और हृदयगत जुड़ाव का सबसे बड़ा कारण किंग की नज़र में यह था कि अमेरिका, अफ्रीका और एशिया के अल्पसंख्यक और भेदभाव के शिकार लोग प्रजातिवाद और साम्राज्यवाद रूपी सामान्य समस्या को जड़मूल से उखाड़ फेंकने के लिए एकसाथ संघर्ष कर रहे थे.


किंग ने यहां हज़ारों भारतीयों से संवाद किया. वे कई विश्वविद्यालयों में गए. वे भारत में पढ़ रहे अफ्रीकी छात्रों से भी मिले. उन्होंने जनसभाओं को भी संबोधित किया. उनके हर कार्यक्रम में बड़ी संख्या में लोग उन्हें सुनने पहुंचते थे. एक तरफ जहां किंग मनुष्य-मनुष्य के बीच भेदभाव को मिटाने की बात करते थे. युद्ध और हथियारों को मिटाकर प्रेम, शांति और भाईचारे की बात करते थे, वहीं लोगों का बड़ा जोर होता था कि उनकी पत्नी कोरेट्टा नीग्रो स्पिरिचुअल वाले गीत गाकर सुनाएं. प्रायः हर कार्यक्रम में वे गाती भी थीं. दिल्ली, कलकत्ता, बंबई, मद्रास और अन्य बड़े शहरों में उन्होंने प्रेस-वार्ताएं भी कीं. अपने पूरे दौरे में उन्हें भरपूर कवरेज मिली और वे अखबारों में छाए ही रहे.


भारत के गरीबों की स्थिति से किंग जूनियर बहुत विचलित हुए थे. एक तरफ फुटपाथ पर सोते हुए लोग, भयानक कुपोषण और भुखमरी, और दूसरी ओर यहां के अमीरों की जीवन-शैली, आवश्यकता से अधिक भोजन और सज-धज को देखकर उन्होंने लिखा है कि ‘बुर्जुआ वर्ग— चाहे वह श्वेत हो, अश्वेत हो या भूरा हो— वह दुनियाभर में एक ही जैसा व्यवहार करता है.


किंग दंपति की यात्रा के दौरान भूदान आंदोलन जोरों पर था. इस आंदोलन ने और विनोबा के व्यक्तित्व ने उन्हें बहुत प्रभावित किया था. वे विनोबा और जयप्रकाश नारायण से मिले भी. पूरी दुनिया का पूर्ण निःशस्त्रीकरण और असैन्यीकरण के विनोबा के विचार ने किंग को खासतौर पर प्रभावित किया था. नौ मार्च, 1959 को आकाशवाणी से प्रसारित अपने विदाई भाषण में उन्होंने इसका विशेष रूप से जिक्र किया था. 


उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है, ‘भारत एक ऐसी भूमि है जहां आज भी आदर्शवादियों और बौद्धिकों का सम्मान किया जाता है. यदि हम भारत को उसकी आत्मा बचाए रखने में मदद करें, तो इससे हमें अपनी आत्मा को बचाए रखने में मदद मिलेगी.’


अपनी आत्मकथा में किंग ने अपनी भारत यात्रा को ‘अहिंसा-धाम की तीर्थयात्रा’ का नाम दिया है. उन्होंने लिखा है- ‘अहिंसक साधनों से अपने लोगों के लिए स्वतंत्रता प्राप्त करने के दृढ़तर संकल्प के साथ मैं अमेरिका लौटा. भारत यात्रा का एक परिणाम यह भी हुआ कि अहिंसा के बारे में मेरी समझ बढ़ी और इसके प्रति मेरी प्रतिबद्धता और भी गहरी हो गई.’


गोपाल  राठी