लहूलुहान जेएनयू की पगडंडियों पर

लेकिन 2019 में जेएनयू का टकराव तो सीधे सत्ता से हो चला है. लहूलुहान जेएनयू के भीतर छात्र संगठनों के टकराव से ज्यादा बाहर से आए नकाबपोशों की मौजूदगी डराने वाली है. 80 के दशक में दिल्ली पुलिस घोड़े पर सवार होकर छात्रों को रौंदते हुए अंदर दाखिल हुई थी.  इस बार पुलिस की मौजूदगी में जेएनयू घायल हुआ.


अठखेलियां खाती इन पगडंडियों के बीच से गुजरते हुए आपको एहसास प्रकृति का ही होगा. जो सुंदर दृश्य आपकी आंखों के सामने है वह बेहद आसानी से आपको उपलब्ध है. ये आपके भीतर की सुंदरता होगी कि आपके एहसास प्रकृति से जुड़ जाएं आपके भीतर प्रेम जागे. जॉन कीट्स की कविता ‘ओड टू ए नाइटेंगल’ को पढ़िएगा तो समझ जाएंगे, प्रकृति कैसे अनुराग को अभिव्यक्ति देती है क्योंकि ‘सुंदरता ही सत्य है, सत्य सुंदर है’.


ये संवाद 1988 का है. जेएनयू के गंगा होस्टल ढाबे से ओपन थिएटर तक चलते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर मुनीस रजा की छात्रों के साथ बातचीत. तब जेएनयू के वाइस चांसलर मोहम्मद शफी आगवानी हुआ करते थे. लेकिन जेएनयू को गढ़ने वाले मुनीस रजा को जेएनयू से कुछ ऐसा प्रेम था कि वह अक्सर शाम के वक्त जेएनयू कैंपस पहुंच जाते थे. जेएनयू के संस्थापकों में से एक मुनीस रजा ही वह शख्स थे जिन्होंने जेएनयू को कैसे बनाया जाए इसे मूर्त रूप दिया.




नए कैंपस में नदियों के नाम पर हर होस्टल का नाम रखा गया. मसलन गंगा, कावेरी, ब्रह्मपुत्र, महानदी आदि. प्रतीकात्मक तौर पर भारत की पहचान को जोड़ने के लिए होस्टल के नाम साबरमती और पेरियार भी रखे गए. जिस जेएनयू कैंपस और होस्टल ने अब खुद को घायल देखा है उसे प्रकृति के समंदर में समेटने की सोच लिए मुनीस रजा तो जेएनयू कैंपस में छात्र-छात्रओं की गर्म होती सांसों को भी रोसेटी की कविता ‘टू ब्लासम’ के जरिए मान्यता देने से नहीं कतराते थे. लेकिन अस्सी के दशक में येलावर्ती के जेएनयू वीसी रहते हुए और साल भर के भीतर पी.एन. श्रीवास्तव को वीसी बनाते  वक्त जिस तरह जेएनयू में पहली बार जबर्दस्त हंगामा हुआ उसने सत्ता की छवि को धूमिल जरूर किया.


लेकिन 2019 में जेएनयू का टकराव तो सीधे सत्ता से हो चला है. लहूलुहान जेएनयू के भीतर छात्र संगठनों के टकराव से ज्यादा बाहर से आए नकाबपोशों की मौजूदगी डराने वाली है. 80 के दशक में दिल्ली पुलिस घोड़े पर सवार होकर छात्रों को रौंदते हुए अंदर दाखिल हुई थी.  इस बार पुलिस की मौजूदगी में जेएनयू घायल हुआ. तब जेएनयू में प्रवेश परीक्षा की प्रक्रिया में बदलाव किया गया था. तब 40 छात्रों को कैंपस से बाहर कर दिया गया था. लेकिन इस बार चालीस से ज्यादा बाहरी नकाबपोश कैंपस में घुसे और पुलिस किसी को रोकना तो दूर, लहूलुहान छात्रों की शिकायत को दर्ज करने से आगे बढ़ ही नहीं पाई.


..पहली बार जेएनयू के सपनों पर हकीकत हावी है जहां पाश घुमड़ने लगा है.. सबसे खतरनाक होता है सपनों का मर जाना..


पुण्य प्रसून बाजपेयी