लाल क़िले से आई आवाज -  सहगल, ढिल्लन, शहनवाज़' 


नेताजी के सहयोगी  
जनरल शाहनवाज खान का आज जन्मदिन है 

देश को गुलामी की बेड़ियों से आजाद करवाने के लिए हजारों देशभक्तों और सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दी. इन महान देशभक्तों  में जनरल शाहनवाज खान का नाम बड़े आदर और मान से लिया जाता है. आजाद हिंद फौज के मेजर जनरल शाहनवाज खान महान देशभक्त, सच्चे सैनिक और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बेहद करीबियों में शुमार थे.l भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध 'आज़ाद हिन्द फ़ौज' के अधिकारी थे। जब द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो गया, उसके बाद जनरल शाह नवाज़ ख़ान, कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लों तथा कर्नल प्रेम सहगल के ऊपर अंग्रेज़ सरकार द्वारा मुकदमा चलाया गया था। शाह नवाज़ ख़ान बॉलीवुड फिल्म अभिनेता शाहरुख ख़ान के नाना थे। 


शाह नवाज़ ख़ान को मुस्लिम लीग और कर्नल गुरुबख्श सिंह ढिल्लों को अकाली दल ने अपनी ओर से मुकदमा लड़ने की पेशकश की, लेकिन इन देशभक्त सिपाहियों ने कांग्रेस द्वारा जो डिफेंस टीम बनाई गई थी, उसी टीम को ही अपना मुकदमा पैरवी करने की मंजूरी दी। मजहबी भावनाओं से ऊपर उठकर प्रेम सहगल, गुरबख्श सिंह ढिल्लों और शाह नवाज़़ ख़ान का यह फैसला सचमुच प्रशंसा के योग्य था। 


 एक सच्चे और बहादुर सैनिक के साथ साथ जनरल खान एक सच्चे समाजसेवी और दूरदर्शी राजनीतिज्ञ भी थे. आजाद हिंद फौज के मेजर जनरल शाहनवाज खान का जन्म ब्रिटिश इंडिया में 24 जनवरी 1914 को गावं मटौर, जिला रावलपिंडी (अब पाकिस्तान) में जंजुआ राजपूत कैप्टन सरदार टीका खान के घर हुआ था. सैनिक परिवार में जन्में शाहनवाज ने अपने बुजुर्गों की राह पर चलने की ठानी. शाहनवाज की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा पाकिस्तान में हुई. आगे की शिक्षा उन्होंने प्रिंस ऑफ वेल्स रायल इंडियन मिलट्री कॉलेज देहरादून में पूरी की. 1940 में ब्रिटिश इंडियन आर्मी में एक अधिकारी के तौर पर ज्वाइन कर लिया.


जब जनरल शाहनवाज ब्रिटिश आर्मी में शामिल हुए थे, तब विश्व युद्ध चल रहा था और उनकी तैनाती सिंगापुर में थी. जापानी फौज ने ब्रिटिश इंडियन आर्मी के सैंकड़ों सैनिकों को बंदी बनाकर जेलों में ठूंस दिया था. 1943 में नेता जी सुभाष चंद्र बोस सिंगापुर आए और उन्होंने आजाद हिंद फौज की मदद से इन बंदी सैनिकों को रिहा करवाया. नेताजी के ओजस्वी वाणी और जोशीले नारे ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ से प्रभावित होकर शाहनवाज के साथ सैंकड़ों सैनिक आजाद हिन्द फौज में शामिल हो गए और भारत माता की मुक्ति के लिए अंग्रेजों से लोहा लेने लगे. शाहनवाज खान के देशभक्ति और नेतृत्व क्षमता से प्रभावित होकर नेताजी ने उन्हें आरजी हुकूमत-ए-आजाद हिंद की कैबिनेट में शामिल किया था. दिसंबर 1944 में जनरल शाहनवाज को नेता जी ने मांडले में तैनात सेना की टुकड़ी का नम्बर 1 कमांडर नियुक्त किया था. सितंबर 1945 में नेता जी आजाद हिंद फौज के चुनिंदा सैनिकों को छांटकर सुभाष ब्रिगेड बनायी थी, जिसका कमांड नेताजी ने जनरल शाहनवाज के हाथ सौंपी थी. इस ब्रिगेड ने कोहिमा में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ मोर्चा संभाला था. संयुक्त सेना सेकेंड डिविजन का कंमाडर बनाकर बर्मा के मोर्च पर भेजा.


ब्रिटिश आर्मी से लड़ाई के दौरान बर्मा में जनरल शाहनवाज खान और उनके दल को ब्रिटिश आर्मी ने 1945 में बंदी बना लिया था. नवंबर 1946 में मेजर जनरल शाहनवाज खान, कर्नल प्रेम सहगल और कर्नल गुरुबक्श सिंह के खिलाफ दिल्ली के लाल किले में अंग्रेजी हकूमत ने राजद्रोह का मुकदमा चलाया. लेकिन भारी जन दबाव और समर्थन के चलते ब्रिटिश आर्मी के जनरल आक्निलेक को न चाहते हुए भी आजाद हिंद फौज के अफसरों को अर्थदण्ड का जुर्माना लगाकर छोड़ने पर विवश होना पड़ा.


1952 में पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर मेरठ से चुनाव जीते. इसके बाद वर्ष 1957, 1962 व 1971 में मेरठ से लोकसभा चुनाव जीता. मेरठ लोकसभा सीट से प्रतिनिधित्व करने वाले जनरल शाहनवाज खान 23 साल केंद्र सरकार में मंत्री रहे. 1952 में चुनाव जीतने के बाद वह पार्लियामेंट्री सेक्रेटी और डिप्टी रेलवे मिनिस्टर बने. 1957-1964 तक वह केन्द्रीय खाद्य एवं कृषि मंत्री के पद पर रहे. 1965 में कृषि मंत्री एवं 1966 में श्रम, रोजगार एवं पुर्नवास मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाली. 1971 से 1975 तक उन्होंने पेट्रोलियम एवं रसायन और कृषि एवं सिंचाई मंत्रालयों की बागडोर संभाली. 1975 से 1977 के दौरान वह केन्द्रीय कृषि एवं सिंचाई मंत्री के साथ एफसीआई के चेयरमैन का उत्तदायित्व भी उन्होंने संभाला. मेरठ जैसे संवेदनशील शहर का दो दशकों से अधिक प्रतिनिधित्व जनरल खान ने किया और उनके कुशल नेतृत्व और सबको साथ लेकर चलने की नीति के कारण शहर में कभी कोई दंगा फसाद नहीं हुआ, जो एक मिसाल है. 1956 में भारत सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की नेताजी की मौत के कारणों और परिस्थितियों के खुलासे के लिए एक कमीशन बनाया था, जिसके अध्यक्ष जनरल शाहनवाज खान थे.


आजाद हिन्दुस्तान में लाल किले पर ब्रिटिश हुकूमत का झंडा उतारकर तिरंगा लहराने वाले जनरल शाहनवाज ही थे. देश के पहले तीन प्रधानमंत्रियों ने लालकिले से जनरल शाहनवाज का जिक्र करते हुए संबोधन की शुरुआत की थी. आज भी लालकिले में रोज शाम छह बजे लाइट एंड साउंड का जो कार्यक्रम होता है, उसमें नेताजी के साथ जनरल शाहनवाज की आवाज है. प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष सेवानिवृत्त न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने जनरल खान की देश के प्रति निष्ठा और राष्ट्रनिर्माण में अग्रणी भूमिका को देखते हुए भारत सरकार से जनरल खान को भारत रत्न देने की मांग की थी. डाक विभाग महान स्वतंत्रा सेनानी जनरल शाहनवाज खां, कर्नल प्रेम चंद और कर्नल गुरुबख्शक पर डाक टिकट जारी कर चुका है


महान स्वतंत्रता सेनानी, देशभक्त और कुशल राजनेता जनरल शाहनवाज खान को काल के क्रूर हाथों ने हम सबसे से 9 दिसंबर 1983 को हमसे छीन लिया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जनरल खान की मौत को देश के अपूर्णीय क्षति करार दिया था और उनके परिवार को फोन करके जनरल खान के पार्थिव शरीर को मेरठ से दिल्ली दफनाने का आग्रह किया था. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इंदिरा जी के कहने पर गाजियाबाद मोहन नगर में जनरल खान के शवयात्रा की अगुआई की थी. इंदिरा जी ने उस समय कहा था कि नेताजी ने आजाद हिंद फौज के दौरान ‘दिल्ली चलो’ का नारा बुलंद किया था, और जनरल खान भी यही चाहते थे कि उनको लालकिले के पास दफनाया जाए. लालकिले के पास स्थित जामा मस्जिद के निकट जनरल खान को पूरे सम्मान के साथ दफनाया गया था.
महान  देशभक्त जनरल शाहनवाज को जन्मदिवस पर  शत शत  नमन