कुंदन लाल सहगल भारतीय सिनेमा के पहले महानायक

स्मरण : कुन्दनलाल सहगल 

कुंदन लाल सहगल भारतीय सिनेमा के पहले महानायकऔर पहले सुपरस्टार रहे हैं जिनसे आधुनिक हिन्दी सिनेमा की यात्रा शुरू हुई थी। सिनेमा की अति नाटकीयता के उस दौर में वे पहले अभिनेता थे जिन्होंने  सहज अभिनय के नए-नए मुहाबरे गढ़े, जिसका अनुकरण बाद के अभिनेताओं ने किया। पिछली सदी के तीसरे और चौथे दशक में उनकी लोकप्रियता का आलम यह था कि उनका नाम सुनते ही लोग सिनेमा घरों की ओर खिंचे चले आते थे। यह वह समय था जब भारतीय फ़िल्म उद्योग मुंबई में नहीं, बल्कि कलकत्ता में केंद्रित था। जम्मू में जन्मे सहगल ने अभिनय या संगीत की कोई विधिवत शिक्षा नहीं ली थी। आर्थिक अभाव में अपनी पढ़ाई छोड़ने वाले सहगल की रेलवे में टाईमकीपर की मामूली नौकरी से हिंदी सिनेमा के सुपरस्टार तक की यात्रा किसी परीकथा से कम रोमांचक नहीं है। 


1932 में पहली फ़िल्म न्यू थियेटर्स की 'मुहब्बत के आंसू' से अपनी अभिनय यात्रा शुरू करने वाले सहगल साहब को उनके सहज, भावपूर्ण अभिनय, गंभीर अदाओं और संजीदा गायिकी के कारण लोगों ने हाथोहाथ लिया। उन्हें बेपनाह सफलता मिली 1933 में ही प्रदर्शित फिल्मों ‘यहूदी की लड़की’, ‘चंडीदास’ और ‘रूपलेखा’ से। उसके बाद जो हुआ वह इतिहास है। उन्होंने अगले पंद्रह वर्षों में छत्तीस हिन्दी फिल्मों में नायक की भूमिकाएं निभाई, जिनमें प्रमुख थीं - सुबह का सितारा, यहूदी की लड़की, राजरानी मीरा, चंडीदास, देवदास, स्ट्रीट सिंगर, बड़ी बहन, दुश्मन, ज़िन्दगी, परिचय, लगन, तानसेन, भक्त सूरदास, भंवर, शाहज़हां, कुरूक्षेत्र, परवाना और उमर खैयाम। वे रूपहले परदे के पहले देवदास थे। उनकी ज्यादातर फिल्मों ने सफलता का इतिहास रचा। हिंदी फ़िल्मों के अलावा उन्होंने कुछ बंगला और तमिल फ़िल्मों में भी अभिनय किया था। कहते हैं कि सहगल के सिर पर बाल नहीं थे। वे विग लगाकर फिल्मों में अभिनय करते थे। अभिनेत्री कानन देवी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है - फिल्म 'साथी' की शूटिंग के दौरान हवा के झोंके से उनकी विग उड़ गई और उनका गंजा सिर दिखने लगा। लेकिन सहगल अपनी धुन में मगन शॉट देते रहे। इस पर दर्शक हंस पड़े। सहगल को पता चला तो वे झेंपने की जगह लोगों के ठहाकों में शामिल हो गए।'


अभिनय के अलावे सहगल भारतीय सिनेमा के पहले सुरीले गायक भी रहे हैं। उस दौर में उनकी गायन शैली का अनुकरण नए गायकों के लिए सफलता की कुंजी मानी जाती थी। मुकेश और किशोर कुमार ने अपने कैरियर के आरंभ में सहगल की गायन-शैली का ही अनुकरण किया था। अपनी आवाज़ की गहराई, सुरों की बारीक़ समझ और लफ़्ज़ों की संजीदा अदायगी के बल पर फिल्म गायिकी को ऊंचाई और गहराई देने का उन्हें श्रेय दिया जाता है। पाकिस्तानी शायर अफ़ज़ाल अहमद सैयद ने उनकी गायिकी के बारे में लिखा था - 'जैसे काग़ज़ मरा‍कशियों ने ईजाद किया था, हुरूफ़ फिनिशियों ने, सुर गंधर्वों ने, उसी तरह सिनेमा का संगीत सहगल ने ईजाद किया। फ़क़ीरों-सा बैराग, साधुओं-सी उदारता, मौनियों-सी आवाज़, हज़ार भाषाओं का इल्म रखने वाली आंखें, रात के पिछले पहर गूंजने वाली सिसकी जैसी ख़ामोशी, और पुराने वक़्तों के रिकॉर्ड की तरह पूरे माहौल में हाहाकार मचाती एक सरसराहट ! बता दो एक बार, ये सब क्या है ? वह कौन-सी गंगोत्री है, जहां से निकल कर आती है सहगल की आवाज़ ?' बालम आय बसो मेरे मन में, दुख के दिन अब बीतत नाहीं, एक बंगला बने न्यारा, बाबुल मोरा नैहर छूटो जाय, करूं क्या आस निरास भई, जब दिल ही टूट गया, गम दिये मुस्तकिल, चाह बर्बाद करेगी हमें मालूम न था जैसे उनके गीतों के मुरीद आज भी लाखों की संख्या में हैं। सहगल ग़ालिब के बड़े प्रशंसक थे। उन्होंने ग़ालिब की बीस से ज्यादा ग़ज़लों को अपनी आवाज़ दी थी। उनकी ग़ज़ल गायकी की एक ख़ासियत थी कि वे ग़ज़ल को एक अनूठी तीव्रता से गाते थे। बेहतरीन मीटर और सिमेट्री के साथ । ग़ालिब का मज़ार उनकी प्रिय जगह थी। एक बार उन्होंने ग़ालिब के मज़ार की मरम्मत भी करवाई थी। सहगल की सबसे बड़ी कमजोरी यह थी कि वे बिना शराब पिए नहीं गाते थे। पहली बार संगीतकार नौशाद ने 'शाहजहां' में उनसे बिना शराब पिए गवाया। सहगल की जिद पर नौशाद ने वही गीत उनसे शराब पिलाने के बाद भी गवाया। स्टूडियो में उपस्थित लोगों ने माना कि उन्होंने बिना पिए गीत को ज्यादा अच्छा गाया है। सहगल ने लगभग रोते हुए नौशाद से कहा - 'आप मेरी ज़िंदगी में पहले क्यों नहीं आए ? अब तो बहुत देर हो गई है।'


अपनी जज़्बाती अदाकारी और दिलकश आवाज़ से सिने प्रेमियों के दिल पर राज करने वाले के.एल.सहगल 43 साल की उम्र में 18 जनवरी, 1947 को संसार को अलविदा कह गए। शायद बहुत शराब पीने से पैदा बीमारियों की वज़ह से। नौशाद ने सहगल की मृत्यु के बाद उनकी बरसी पर लिखा था — 'संगीत के माहिर तो बहुत आए हैं, लेकिन दुनिया में कोई दूसरा 'सहगल' नहीं आया'। उनकी पुण्यतिथि (18 जनवरी) पर भावभीनी श्रधांजलि ! 


By - Dhruv Gupt