इलाहाबाद का रोशन बाग़ आजादी की लड़ाई का गवाह रहा है इसी ऐतिहासिक रोशन बाग़ ने एक और लड़ाई में अपना सुर मिला दिया है। CAA, NRC, NPA जैसे सांप्रदायिक और गरीब जनता विरोधी एजेंडे के खिलाफ औरतें शाहीन बाग़ की तरह 12 जनवरी की शाम से यहां इकट्ठा हो गई हैं।
हम जैसे समाज में रहते हैं वहां औरतों का बाहर निकालना और चौबीसों घंटे धरने पर बैठना आसान नहीं होता। लेकिन औरतें आपस में मिलजुल काम भी निपटा रहीं हैं और आंदोलन में मुखर तौर पर शामिल भी हो रहीं हैं। इसमें औरतों के शामिल होने की प्रक्रिया भी रोचक है। नाजिया को पता चला कि CAA के खिलाफ रोशन बाग़ में औरतें आ रही हैं, उन्हें पहले ही लग रहा था, अब बहुत हुआ, कुछ करना चाहिए। उन्होंने शहर में ही अपने मायके फोन किया, अम्मी, अप्पी और खाला को तैयार रहने को कहा। शौहर घर पर नहीं थे, इसलिए बेटे को मायके में छोड़ सबको लेकर रोशन, बाग़ अाई हैं।
सालेहा जी ने करेली में रहने वाली अपनी आपा को फोन किया, रोशन बाग़ में मिलो, 9 वीं में पढ़ने वाली बेटी और पति से भी साथ चलने को कहा, पति नहीं माने तो खुद आ गईं। आपा का हालचाल भी जाना विरोध भी दर्ज कराया।
नूह जामिया में पढ़ती है। छुट्टियों में घर अाई हैं, यहां के प्रदर्शन के बारे में पता चला तो खुद भी कई प्ले कार्ड बना कर अम्मी के साथ आ गईं।
सारा प्राइवेट नौकरी करतीं हैं, वे इस प्रदर्शन की शुरुआत करने वालों में शामिल हैं। "नौकरी छूटने का डर नहीं है?" पूछने पर कहती हैं, "अब जो होगा देखा जायेगा।" शाम हो गई है, इसलिए वे लगातार औरतों से कह रही थीं कि जिनके घर में दो औरतें हो तो एक खाना बनाने जाए, एक यही बैठी रहे। अगर अकेली हो तो जल्दी से खाना बना कर आ जाएं।
रोशन बाग़ इस समय आंदोलन और आज़ादी के नारों का ही नहीं औरतों के लिए अपनी सहेलियों, बहनों, मायके के लोगों से मिलने का अड्डा भी है इन दिनों।
"चूड़ी पहनने वालिया " इन दिनों पूरे देश की तरह यहां भी फासीवाद की कब्र खोदने पर तुली हुई हैं ( कन्हैया कुमार तुम भी सुन लो)। पुलिस पीएसी ने रोशन बाग़ खाली कराने के लिए बहुत डराया, धमकाया, टेंट हाउस वालों को टेंट देने से रोका, लेकिन महिलाएं डटी हुई हैं। 12 की रात पुलिस से बात करने जब सारा सामने गई तो सामंती पुलिस वालों ने उससे बात करने की बजाय कहा, अपने किसी "सरपरस्त" को बात के लिए भेजो। मोहल्ले के बुजुर्ग औरतें मर्द सरपरस्ती के लिए सामने आ गए, पुलिस पीछे हट गई। शहर के कई जनवादी संगठनों के लोग अपना समर्थन देने रोशन बाग़ पहुंच रहे हैं, कई बार ऐसा हुआ, उन्होंने कोई ऐसा नारा लगवाया वो औरतों को नहीं समझ आया, लेकिन "आजादी" का नारा ऐसा ज़ुबान पर चढ़ा है कि, नहीं समझ में आने वाले नारे का जवाब भी उन्होंने पूरे जोश के साथ दिया "आज़ादी"। अपनी अम्मियों के साथ बच्चियां भी आज़ादी का नारा पूरे जोश के साथ लगा रही हैं। इधर उधर घूम रहे कुछ पत्रकार और ढेरों गुप्तचर लड़कियों महिलाओं को सवाल पूछने के नाम पर भ्रमित करने का पूरा प्रयास कर रहे हैं, लेकिन औरतें उनका सही सही जवाब दे रही हैं। एक पत्रकार ने मुझे भी घरेलू महिला जान कर मोदी जी वाले जुमले को सवाल के रूप में पूछा " ये तो नागरिकता देने के बारे में है लेने के बारे में नहीं, फिर आप प्रदर्शन में क्यों अाई हैं?" अफसोस उन्हें इस बात को समझना पड़ा।
प्रदर्शनों से क्या होगा नहीं मालूम, लेकिन इतिहास में दर्ज होगा कि जब जरूरत थी "चूड़ियों वालियां" हमेशा की तरह इतिहास बनाने में शामिल थी।
रोशन बाग़ इलाहाबाद से
सीमा आज़ाद
इलाहाबाद का रोशन बाग़ आजादी की लड़ाई का गवाह रहा है।