हम देखेंगे- क्रांतिकारी छात्रों का नया तराना


हम देखेंगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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हम देखेंगे
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिसका वादा है
जो लोह-ए-अज़ल[1] में लिखा है
जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गरां [2]
रुई की तरह उड़ जाएँगे
हम महकूमों[3] के पाँव तले
ये धरती धड़-धड़ धड़केगी
और अहल-ए-हकम[4] के सर ऊपर
जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी
जब अर्ज-ए-ख़ुदा के काबे से[5]
सब बुत[6] उठवाए जाएँगे
हम अहल-ए-सफ़ा[7], मरदूद-ए-हरम[8]
मसनद पे बिठाए जाएँगे
सब ताज उछाले जाएँगे
सब तख़्त गिराए जाएँगे



बस नाम रहेगा अल्लाह[9] का
जो ग़ायब भी है हाज़िर भी
जो मंज़र [10] भी है नाज़िर[11] भी
उट्ठेगा अन-अल-हक़ [12] का नारा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो
और राज़ करेगी खुल्क-ए-ख़ुदा [13]
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो


शब्दार्थ
1. लोह-ए-अज़ल -- विधि के विधान
2. कोह-ए-गरां -- घने पहाड़
3. महकूमों -- रियाया या शासित लोगों
4. अहल-ए-हकम -- सताधीश
5. अर्ज-ए-ख़ुदा के काबे से -- इस पृथ्वी पर से
6. बुत -- सत्ताधारियों के प्रतीक पुतले
7. अहल-ए-सफ़ा -- साफ़ सुथरे लोग
8. मरदूद-ए-हरम -- धर्मस्थल में प्रवेश से वंचित लोग
9. अल्लाह -- ईश्वर
10. मंज़र -- दृश्य
11. नाज़िर -- देखने वाला
12. अन-अल-हक़ -- मैं ही सत्य हूँ या अहम् ब्रह्मास्मि
13. खुल्क-ए-ख़ुदा -- आम जनता