ये खुले हुए बटन, ये 56 इंच का सीना, ये आकर्षक आंखें, ये मजबूत बाजू और बेफिक्र अंदाज देखिए। अशफाक उल्लाह खान..
अशफाक को आप अकेले याद नही कर सकते। जैसे ब्रम्हा-विष्णु, राम-लक्ष्मण, गांधी-नेहरू,भगत-सुखदेव को अकेले याद नही कर सकते.. अशफाक के साथ बिस्मिल को याद करना ही होगा।
सहोदर नही थे, उम्र का फासला था। गुरु शिष्य सा सम्बंध था, शायरी की डोर थी। साथ जिए, साथ लड़े, साथ मरे। साथ साथ देश पर कुर्बान हो गए। एक दूसरे का आदर करते थे। मगर एक बात आपको नही पता होगी।
अशफाक भीतर ही भीतर जलते थे बिस्मिल से...और बेहद जलते थे। आखिर जलना लाज़िम था, धर्म अलग था दोनो का। उनकी संस्कृति, धार्मिक शिक्षाओ का, उनकी सोच का.. और मुसलमान अशफाक, हिन्दू बिस्मिल को अपने से ज़्यादा प्रिविलेज्ड पाते थे।
यकीन नही होता ना !!
मगर सच है, अशफाक बिस्मिल से बेहद जलते थे। उन्होंने लिखा-"बिस्मिल का कहना है, कि अगर इस देश को आजाद कराए बगैर मर गया, तो फिर से जन्म लेकर फिर लडूँगा, फिर फिर मरूँगा।
ऐसे तो बिस्मिल तब तक जन्म लेते रहेंगे, मरते रहेंगे जब तक देश आजाद नही हो जाता। और मेरे इस्लाम मे पुनर्जन्म की अवधारणा नही है। मेरे पास देश को देने के लिए फकत एक ही जिंदगी है" ।
तो अशफाक के पास खोने को महज एक जिंदगी थी। अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते दे दी। संघर्ष का कारण फिर मौजूं है। आजादी के नारे फिर गूंज रहे हैं। इसलिए बिस्मिल ने दोबारा जन्म जरूर लिया होगा। वो जरूर किसी बाग में बैठे होंगे। शायरी पढ़ रहे होंगे। इस बार वो अपना लिखा नही, अशफाक का लिखा पढ़ रहे होंगे।
हटने के नहीं पीछे, डरकर कभी जुल्मों से,
तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे।
बेशस्त्र नहीं हैं हम, बल है हमें चरख़े का,
चरख़े से ज़मीं को हम, ता चर्ख़ गुंजा देंगे।
परवा नहीं कुछ दम की, ग़म की नहीं, मातम की,
है जान हथेली पर, एक दम में गंवा देंगे।
उफ़ तक भी जुबां से हम हरगिज़ न निकालेंगे,
तलवार उठाओ तुम, हम सर को झुका देंगे।
सीखा है नया हमने लड़ने का यह तरीका,
चलवाओ गन मशीनें, हम सीना अड़ा देंगे।
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तो बिस्मिल लड़ रहे होंगे.. अबकी बार अपने दोस्त के लिए, अशफाक के लिए, उंसके परिवार के लिए। उंसके परिवार को हिंदुस्तान में जगह बरकरार रखने के लिए। इसलिए की वो अशफाक अपने कागज लेकर दोबारा जन्म नही लेगा। इसलिए बिस्मिलों को अशफाक के लिए लड़ना होगा।
जाहिर है आप रामप्रसाद उर्फ बिस्मिल को कपड़ो से नही पहचान सकेंगे। मगर जान लीजिये, कि 'जिनकी हिम्मत का चर्चा गैर की महफ़िल में होगा" ...वो बिस्मिल ही होंगे।