वकील की ओर से अपने पेशेवर कामकाज में बिना किसी नैतिक दोष के की गई लापरवाही को पेशेवर कदाचार की श्रेणी में नहीं रखा जकता है।"छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

      छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक वकील के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को खारिज करते हुए कहा कि पेशेवर सेवाओं के प्रदर्शन में लापरवाही आपराधिक दायित्व को आकृष्ट नहीं करती। जस्टिस संजय के अग्रवाल ने कहा, "यह सही है कि याचिकाकर्ता अधिक पेशेवर जिम्‍मेदारी और क्षमता का प्रदर्शन कर सकती थी, फिर भी ऐसा न कर पाने के कारण उसे आपराधिक रूप से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता था।" मामले के तथ्यों के मुताबिक, याचिकाकर्ता-अधिवक्ता सुभा जक्कनवार पर आईपीसी की धारा 420, 467, 468, 471 और 120 बी के तहत कथित रूप से 10 ऋण आवेदनकर्ताओं, जिन्होंने देना बैंक से ऋण के लिए आवेदन किया था, को गलत तरीके से नॉन एन्कम्ब्रन्स सर्टिफिकेट प्रदान करने का आरोप लगाया गया था। जब आवेदनकर्ता ऋण चुकाने में विफलता रहे, तब जांच में यह पता चला उन्होंने जो दस्तावेज दिए थे, वे झूठे और जाली थे। नतीजतन, उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। मामले में याचिकाकर्ता को को भी अभियुक्त बनाया गया, उन पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने कानूनी जांच का नॉन एन्कम्ब्रन्स सर्टिफिकेट दे दिया और उसने संबंधित दस्तावेजों को प्रमाणित किया, और इस प्रकार उन्होंने अपराध भी किया। अदालत ने याचिकाकर्ता के खिलाफ उक्त प्राथमिकी को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया कि केवल इसलिए कि उसकी राय स्वीकार्य नहीं थी, उस पर आपराधिक अभियोग नहीं लगाया जा सकता, विशेष रूप से जब इस बात के ठोस साक्ष्य के नहीं है कि वो अन्य षड्यंत्रकारियों के साथ जुड़ी हुई थीं। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता, अधिक से अधिक, घोर लापरवाही या पेशेवर कदाचार की उत्तरदायी हो सकती है, अगर ये स्वीकार्य साक्ष्य से स्थापित ‌हो सके तो। केंद्रीय जांच ब्यूरो, हैदराबाद बनाम के नारायण राव, (2012) 9 एससीसी 512 को फैसले का आधार बनाया गया। "यह भली प्रकार तय कानून है कि बैंकिंग क्षेत्र में ऋण देने के लिए कानूनी राय देना एक वकील के काम का एक अभिन्न अंग बन गया है। एक वकील, उसकी ओर से ये जिम्मेदारी है कि वो अपने ज्ञान और कौशल का उपयोग बेहतरीन तरीके से करे, और अपने ग्राहकों के हितों के अनुरूप अटूट निष्ठा का प्रदर्शन करें। उन्हें अपने ज्ञान का उपयोग इस तरह से करना होगा जो उनके ग्राहकों के हित को आगे बढ़ाए। हालांकि, ऐसा करते समय अधिवक्ता अपने ग्राहक को आश्वस्त नहीं करता है कि उसके द्वारा दी गई राय। दोषरहित है और हर तरह से अपने लाभ के लिए काम करना चाहिए। किसी भी अन्य पेशे की तरह, एकमात्र आश्वासन जो दिया जा सकता है और अपनी पेशेवर क्षमता से काम कर रहे वकील की भी सहमति हो सकती है कि एक पेशवर अपने क्षेत्र में अपेक्षित कौशल रखता हो और अपने कामकाज में वह अपने कौशल को उचित योग्यता के साथ प्रयोग करे। एकमात्र दायित्व जो एक वकील पर अधिरोपित किया जा सकता है, वो कानूनी कौशल के अनुप्रयोग या ऐसे कौशल के उच‌ित प्रयोग में लापरवाही की है।" पांडुरंग दत्तात्रय खांडेकर बनाम बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र, 1984 एससीआर (1) 414 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा थाः "अनुचित कानूनी सलाह देने और गलत कानूनी सलाह देने के बीच बहुत अंतर है। एक वकील की ओर से अपने पेशेवर कामकाज में बिना किसी नैतिक दोष के की गई लापरवाही को पेशेवर कदाचार की श्रेणी में नहीं रखा जकता है।" इस आलोक में ये माना गया कि एक ओपिन‌ियन एडवोकेट का आपराधिक दायित्व तभी होता है, जब वो बैंक को धोखा देने की योजना में सक्रिय भागीदार हो। चूंकि वर्तमान मामले में इस बात का कोई सबूत पेश नहीं किया गया था कि याचिकाकर्ता ने अन्य सह-अभियुक्तों के साथ झूठी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए साजिश रची थी या नॉन एन्कम्ब्रेंस रिपोर्ट पेश करने के लिए किसी भी प्रकार का लाभ लिया था। वो सभी आरोपों से बरी की जाती हैं और कार्यवाही को रद्द किया जाता है। याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व एडवोकेट आशीष श्रीवास्तव ने किया और प्रतिवादी की ओर से डिप्टी एडवोकेट जनरल एचएस अहलूवालिया पेश हुए।