हिन्दू-मुस्लिम एकता के  प्रतीक थे शहीद अशफाक उल्ला खान 


भारत माँ को पराधीनता की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए हँसते-हँसते फाँसी का फंदा चूमकर प्राणों का उत्सर्ग करने वाले क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खान हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक थे। अंग्रेजों की कोई भी चाल आजादी की तरफ बढ़ते उनके कदमों को रोक नहीं पाई।


इतिहासकार मालती मलिक के अनुसार काकोरी कांड के बाद जब अशफाक को गिरफ्तार कर लिया गया, तो अंग्रेजों ने उन्हें सरकारी गवाह बनाने के लिए कई तरह की चालें चलीं। उन्होंने आजादी के इस दीवाने को विचलित करने के लिए साम-दाम-दंड-भेद के तमाम रास्ते अपनाए, लेकिन अशफाक के इरादे अटल रहे।


अंग्रेज अधिकारियों ने उनसे यह तक कहा कि हिन्दुस्तान आजाद हो भी गया तो उस पर हिन्दुओं का राज होगा और मुसलमानों को कुछ नहीं मिलेगा। इसके जवाब में अशफाक ने अंग्रेज अफसर से कहा फूट डालकर शासन करने की चाल का उन पर कोई असर नहीं होगा और हिन्दुस्तान आजाद होकर रहेगा।
अशफाक ने अंग्रेज अधिकारी से कहा तुम लोग हिन्दू-मुसलमानों में फूट डालकर आजादी की लड़ाई को अब बिलकुल नहीं दबा सकते। अपने दोस्तों के खिलाफ मैं सरकारी गवाह कभी नहीं बनूँगा।


उनके  लिए  मंदिर और मसजिद एक समान थे एक बार जब शाहजहांपुर में हिन्दू और मुसलमानों में झगड़ा हुआ और शहर में मारपीट शुरु हो गई उस समय आप बिस्मिल जी के साथ आर्य समाज मन्दिर में बैठे हुए थे । कुछ मुसलमान मन्दिर के पास आ गए और आक्रमण करने के वास्ते तैयार हो गएं । आपने अपना पिस्तौल फौरन निकाल लिया । और आर्य समाज मन्दिर से बाहर आकर मुसलमानों से कहने लगे कि मैं कटटर मुसलमान हूं परन्तु इस मन्दिर की एक-एक ईंट मुझे प्राणों से प्यारी है । मेरे नजदीक मन्दिर और मसजिद प्रतिष्ठा बराबर है । अगर किसी ने इस मन्दिर की ओर निगाह उठाई तो गोली का निशाना बनेगा । अगर तुमको लड़ना है तो बाहर सड़क पर चले जाओ और खूब दिल खोल कर लड़ लो । उनकी इस सिंह गर्जना को सुन कर सब के होश हवास गुम हो गए । और किसी का साहस न हुआ जो आर्य समाज मन्दिर पर आक्रमण करे सारे के सारे इधर उधर खिसक गए । यह तो उनका सार्वजनिक प्रेम था । इस से भी अधिक आपको बिस्मिल जी से प्रेम था .
हिन्दू - मुस्लिम एकता  और आज़ादी के इस मतवाले को कोटि कोटि नमन