डॉ. प्रियंका रेड्डी के साथ सामूहिक बलात्कार फिर जिंदा जला देने वाली नृशंस हटना की प्रतिक्रिया पूरे देश में उसी तरह से हुई जिस तरह निर्भया के साथ हुये बर्बर सामूहिक बलात्कार और हत्या के बाद पूरे देश में देखने मिली थी। तब से अब तक समाज की विद्रूपता में कमी नहीं आई यह सामने आ गया।
पूरा देश निर्भया कांड के बाद क़ानून बनने के बाद भी बलात्कारियों को फांसी नहीं दिए जाने से आक्रोशित है।
इसी बीच हैदराबाद से खबर आई कि
सुबह 3 बजे सात दिन से पुलिस हिरासत में घटना स्थल पर घटना को पुर्नर्निमित करने के उद्देश्य से ले जाये गये आरोपियों की पुलिस द्वारा इनकाउन्टर कर दिया गया ,असल मे यह सुनोयोजित हत्याकांड था ।
परिणाम यह हुआ , जो लोग कल तक बलात्कारियों को फांसी देने के लिये नारेबाजी कर रहे थे उन लोगों ने सुबह से तेलंगाना पुलिस की जिन्दाबाद के नारे लगाना शुरू कर दिया। मीडिया के माध्यम से देश भर को ये संदेश दिया गया कि डॉ. प्रियंका रेड्डी के साथ न्याय कर दिया गया है।अब किसी आंदोलन की जरूरत नहीं है ।
दूसरी तरफ सोशल मीडिया में सबसे ज्यादा ट्वीट कुलदीप सिंह सेंगर विधायक, पूर्व मंत्री चिन्मयानंद तथा आशाराम बापू के साथ भी यही बर्ताव किये जाने को लेकर दिखलाई पड़े।
देश में औसतन हर वर्ष पचीस हजार से तीस हजार बलात्कार के प्रकरण दर्ज किये जाते हैं। 98 प्रतिशत बलात्कारी पीड़िता के पूर्व परिचित होते हैं। मुख्य सवाल यह है कि क्या जिस पर बलात्कार का आरोप लगे उसका एनकाउन्टर कर दिया जाना चाहिये?
हैदराबाद में जिस पुलिस कमिशनर के नेतृत्व में इनकाउन्टर किया गया। उन्हें पहले भी 2008 में वारंगल में एसिड अटैक करने वाले तीन आरोपियों के इनकाउन्टर को लेकर वाहवाही मिल चुकी है।
इनकाउन्टर तमाम सवाल खड़े करता है। पहला यह कि क्या जिन आरोपियों को पकड़ा गया वही बलात्कारी थे? दूसरा ,सैकड़ों पुलिसवालों के साथ मुंह ढांककर हथकड़ी लगाकर जिन आरोपियों को हिरासत के सात दिन बाद घटनास्थल पर ले जाया गया क्या उनके पास कोई हथियार थे? क्या उन्होंने बंद गाड़ी में पुलिस वालों पर हमला किया था? तीसरा आरोपियों को रात के तीन बजे पुलिस को घटना स्थल पर ले जाने की क्या जरूरत थी? चौथा क्या इनकाउन्टर सुनियोजित था तथा तेलंगाना पुलिस के मुखिया एवं मुख्यमंत्री के निर्देश पर प्रायोजित किया गया था? पांचवां महत्वपूर्ण सवाल यह है कि पीयूसीएल वेर्सेस स्टेट ऑफ़ महाराष्ट्र, सीडीजे 2014 एससी 831 प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पुलिस इनकाउन्टर को लेकर जो 16 गाइडलाइन दी गई थी, उनका पालन किया गया है या नहीं?
इनकाउन्टर न तो पहली बार हुआ है न ही अंतिम बार। आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय की फुल बैंच ने इनकाउन्टर को लेकर मुकदमा दर्ज करने तथा प्रकरण न्यायालय में चलाने के निर्देश दिये थे क्योंकि हैदराबाद का इनकाउन्टर तो बलात्कार के आरोपियों पर किया गया है लेकिन तेलंगाना से लेकर बस्तर तक तमाम इनकाउन्टर माओवादी बताकर किये जाते हैं। ऐसा ही एक इनकाउन्टर छत्तीसगढ़ में आदिवासी महिला मीना खलको का किया गया था। न्यायिक जांच में पाया गया था कि पुलिस ने सामूहिक बलात्कार के बाद हत्या कर दी थी। इसी तरह की तमाम घटनायें आतंकवादियों के इनकाउन्टर को लेकर कश्मीर और पूर्वोत्तर में सामने आती रही हैं।
छत्तीसगढ़ में सोनी सूरी के साथ घटित मानवता को शर्मसार करने वाली घटना पाठकों को याद होगी। जब सोनी सूरी के गुप्तांगों में पत्थर भरकर उसके साथ ज्यादती की गई थी। ज्यादती करने वाला पुलिस का आई.जी. खंडूरी था। जिसे राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
कानून हाथ में लेकर कार्यवाही करने वाले पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी बराबर पुरस्कृत होते रहे हैं। ग्वालियर चंबल संभाग में डकैत उन्मूलन के नाम पर सैकड़ों इनकाउन्टर हुये। इनकाउन्टर स्पेशलिस्ट इंस्पेक्टर से प्रदेश के पुलिस मुखिया तक पदोन्नत किये गये। यूपी में राजनैतिक इनकाउन्टर को लेकर कई सरकारों पर आजादी के बाद से ही तमाम सवाल खड़े होते रहे हैं। एक तरफ अपराधियों का इनकाउन्टर करने वालों की वाहवाही होती है, वहां दूसरी तरफ पिछले चुनावों में एडीआर के मुताबिक 327 उम्मीदवारों को पार्टियों ने टिकट दिये। 48 विधायक, सांसद ऐसे हैं जिनपर महिलाओं के साथ रेप, हत्या एवं संगीन अपराध के मुकदमे दर्ज हैं।
निर्भया कांड के बाद विशेष न्यायालय गठित कर अपराधियों को जल्दी से जल्दी सजा देने का कानून बना। कानून बनने के बाद देश के कई न्यायलयों ने 15 दिन से तीन महीने के भीतर अपराधियों को फांसी दे दी। लेकिन पूरा देश जानता है कि अन्य अपराधी तो दूर निर्भया के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या करने वाले आरोपियों तक को अब तक सजा नहीं मिल पाई है।
देश में जब भी किसी राज्य में दिल्ली, हैदराबाद, उन्नाव या कठुवा में इस तरह की घटनायें उजागर होती हैं तब मीडिया विधानसभाओं और संसद तक का ध्यान अपराधियों की ओर जाता है। समाज में भी सोचने-समझने वाले नागरिक आक्रोशित होते हैं। लेकिन महिलाओं के खिलाफ अपराधों में कमी आने की बजाए ऐसी घटनायें लगातार बढ़ती चली जा रही हैं। इसीलिये जो लोग यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि इनकाउन्टर बलात्कार रोकने का कोई तरीका हो सकता है। वे केवल लोगों के गुस्से को शांत करने की दृष्टि से ऐसा कर रहे हैं कोई हल निकालने की दृष्टि से नहीं। हां इतना जरूर तय है कि इनकाउन्टर को महिमामंडित करने से गैर न्यायिक हत्याओं का बढ़ना तय है। यूं भी पुलिस हिरासत में तथा जेलों में दुनिया में सबसे ज्यादा मौतें भारत में होती हैं। यदि गैर न्यायिक हत्या को न्याय मान लिया जायेगा तो भीड़ द्वारा की जा रही हत्यायें (मोब लींचिग) को भी सामाजिक मान्यता तथा वैधानिकता मिल जायेगी। हैदराबाद इनकाउन्टर के बाद भाजपा की एक सांसद ने इनकाउन्टर को कानून तौर पर वैध बनाने की मांग की है।
सबसे ज्यादा दुखद यह है कि यह सब देश के संविधान के निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर के 63वें परिनिर्वाण दिवस के दिन हो रहा है। मीडिया के माध्यम से सरकारें यह बता रही हैं कि कानून सीआरपीसी और संविधान के बगैर भी न्याय किया जा सकता है। जो न्याय देने की परिपाटी कंगारू कोर्ट बनाकर बनाना रिपब्लिक में दी जा रही है वही भारत जैसे संविधान से चलने वाले लोकतांत्रिक देश भी अपनाई जा रही है।
पुलिस द्वारा इनकाउन्टर की जाने को लेकर तमाम अध्ययन और शोध हुये हैं कई पुलिस कमीशन बैठे और उन्होंने तमाम रिपोर्ट दीं ताकि पुलिस हिरासत में मौतों को रोका जा सके। लेकिन उनकी सिफारिशों पर किसी राज्य और केन्द्र सरकार ने ध्यान नहीं दिया। तथा ना तो पुलिस व्यवस्था और न ही न्याय व्यवस्था इन गैर न्यायिक हत्याओं को लेकर कोई ठोस कार्यवाही करना चाहते हैं और न ही समाज कोई दीर्घकालीन योजना बनाकर अपराधों को विशेषकर महिलाओं, बच्चों, अल्पसंख्यकों, दलितों और आदिवासियों के खिलाफ हो रहे जघन्य अपराधों को रोकने की दिशा में कोई ठोस कार्यवाही करता दिखलाई पड़ता है।
नी -जर्क रिएक्शन से वर्तमान परिस्थिति में कोई बड़ा बदलाव होता दिखाई नहीं देता।