5 अगस्त के फैसले से आम कश्मीरी भारत से बहुत दूर चला गया है

कश्मीर में धारा 370 और 35ए हटाने के 5 अगस्त को हुए फैसले के 120 दिन हो चुके हैं। इस बीच तमाम राजनेताओं ने श्रीनगर जाने का प्रयास किया लेकिन उन्हें सरकार द्वारा रोक दिया गया। कुछ नेता सुप्रीम कोर्ट से अनुमति लेकर श्रीनगर पहुंचे। केन्द्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा समाप्त कर दो केन्द्र शासित क्षेत्रों में बांटने की कार्यवाही भी पूरी हो चुकी है। नये लेफ्टिनेट गर्वनर भी भेजे जा चुके हैं। 


केन्द्र सरकार के फैसले के बाद भाजपा नेताओं ने तमाम किस्म की ऊल-जलूल टिप्पणियां की जिसमें जमीन खरीदने से लेकर कश्मीरी बहू लाने तक के दावे किये गये थे। पूरे देश को ये समझाया गया कि 370 खत्म होते ही जम्मू-कश्मीर का वास्तविक तौर पर भारत के साथ विलय पूर्ण हो गया है। हालांकि आजादी के बाद से ही सभी नेता यह दावा करते रहे हैं कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। 


जम्मू-कश्मीर में जो कुछ भी किया गया है वह मोदी जी के न्यू इंडिया की बानगी मात्र है। जिसमें किसी भी राज्य का दर्जा एक झटके में समाप्त किया जा सकता है तथा उसे विभाजित किया जा सकता है। केन्द्र सरकार के इस फैसले ने भारत के संघीय ढ़ांचे पर कील ठोकने का काम किया है। मोदी जी के न्यू इंडिया में देश के किसी भी हिस्से के संचार साधनों को ठप्प किया जा सकता है। यह डिजिटल इंडिया की असलियत बतलाता है, जिसमें जब चाहे सरकार नेटवर्क ठप्प कर सकती है। बाहर के लोगों को यह अंदाजा है कि यह सबकुछ केवल मुस्लिम बाहुल्य कश्मीर के इलाके में हो रहा है जहां 75 लाख से अधिक आबादी निवास करती है। असलियत एकदम दूसरी है हाल ही में मैंने जब ग्यारह संगठनों के तीस साथियों के साथ जम्मू से श्रीनगर तक की यात्रा 26 नवम्बर से शुरू की तब पता चला कि जम्मू के इलाके में भी कहीं भी व्हट्सअप, ईमेल तथा फेसबुक आम नागरिकों या पर्यटकों के लिये उपलब्ध नहीं है। नेटवर्क बंद होने के कारण अब तक करोड़ों रुपये का नुकसान जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को हो चुका है। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति का प्रतिनिधिमंडल हाल ही में कश्मीर के किसानों से मिलकर लौटा है। सेब उत्पादक किसानों के संगठन के अनुसार केवल सेब पैदा करने वाले किसानों को दस हजार करोड़ का नुकसान हुआ है। गत चार महीनों में जम्मू-कश्मीर राज्य में कुल नुकसान पचास हजार करोड़ तक हो चुका है। जिसकी भरपाई के लिये हमने केन्द्र सरकार से जम्मू कश्मीर को पचास हजार करोड़ का पैकेज देने की मांग की है। 


जम्मू कश्मीर में आम नागरिक भयभीत हैं। वह ना तो एकजुट होकर जलूस निकाल सकता है, न ही बैठकें की जा सकती हैं। हमारी 'लोकतंत्र बहाल करो' कश्मीर एकजुटता मार्च को भी कहीं भी जलूस नहीं निकालने दिया गया। कहा गया कि आप गाड़ी से कहीं भी जा सकते हैं लेकिन रामबन के आगे गाड़ी से भी नहीं जाने दिया गया। जबरदस्ती कर, एकजुटता मार्च को वापिस कर दिया गया। हालांकि पांच साथी जम्मू वापिस लौटकर फिर श्रीनगर जाने में सफल रहे। लेकिन अधिकृत तौर पर इसकी कोई अनुमति नहीं थी। यहां तक कि प्रेस क्रान्फ्रेंस भी नहीं करने दी गई। जहां भी प्रेस क्रान्फ्रेंस हुई वहां पुलिस ने आकर पत्रकारों को डराने-धमकाने का काम किया। हमसे सौ से अधिक पत्रकार मिले लेकिन कश्मीर टाइम्स और उड़ान के अलावा किसी अखबार ने कोई खबर नहीं छापी। पत्रकारों ने बताया कि उन्होंने खबर बनाकर फोटो और वीडियो के साथ भेजी थी लेकिन उसे छपने नहीं दिया गया। न ही चैनल पर दिखाया गया। यह है मोदी जी का न्यू इंडिया, जिसमें संविधानप्रदत स्वतंत्र अभिव्यक्ति, इक्ट्ठा होने तथा कहीं भी आने-जाने की आजादी नहीं है। 


सरकार ने पूरे कश्मीर को जेल खाने में बदल दिया है। अखबारों में प्रकाशित ख़बरों के अनुसार 5 अगस्त के बाद तेरह हजार से अधिक जम्मू कश्मीर के नागरिक गिरफ्तार किये गये हैं, आठ लाख से अधिक सैनिक बल एवं अर्धसैनिक बल पहले से ही वहां तैनात थे। 5 अगस्त के पहले जब रातों-रात पर्यटकों तथा बाहर से आकर काम करने वाले लोगों को भगाया गया तब एक लाख से अधिक अतिरिक्त बल और तैनात कर दिया गया। 


बाहर यह बताया जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर में स्थिति सामान्य है। लेकिन वास्तविक स्थिति यह है कि सभी कुछ असमान्य है। सभी नागरिकों की दिनचर्या प्रभावित है। पांच लाख से अधिक रोजमर्रा का काम करने वाले अन्य प्रदेशों के लोग अपने घर वापिस भेजे जा चुके हैं। काम करने वाले नहीं मिल रहे हैं। व्यापार लगभग ठप्प पड़ा हुआ है। कोई भी दुकान पूरी घाटी में तीन-चार घंटे से अधिक नहीं खुलती है। यह कश्मीरियों द्वारा अहिंसात्मक प्रतिरोध की कार्यवाही के तहत हो रही हड़ताल का नतीजा है। पूरी घाटी में स्कूल खुले हुये हैं लेकिन वहां केवल शिक्षक दिखलाई पड़ते हैं, हमारे साथियों ने जब खाली स्कूलों के फोटो लिये तब उनसे उन फोटो को जबरदस्ती डिलीट कराया गया। बच्चों ने बताया कि घर से ही परीक्षायें ली जा रही हैं। उत्तर पुस्तिकाओं को पहले घर पहुंचा दिया जाता है बाद में इक्ट्ठा किया जाता है। स्कूल में पढ़ाई न होने के कारण अभिभावकों को बच्चों के लिये अलग से ट्यूशन का इंतजाम करना पड़ रहा है। घाटी में सार्वजनिक यातायात के साधन, आम नागरिकों को उपलब्ध नहीं हैं। इस तरह का माहौल बनाया गया है जिससे हर नागरिक असुरक्षित हो गया है। घाटी में जहां कहीं भी नागरिकों ने इक्ट्ठे होकर सुरक्षाबलों द्वारा की जा रही आपत्तिजनक कार्यवाहियों का विरोध किया वहां पेलेट गन से गोलियां चलाई गयीं। सैकड़ों नागरिक अस्पतालों और घरों पर इन गोलियों के लगने के बाद घायल होकर इलाज करा रहे हैं। 


कश्मीर में तीन तरह के लोग हैं एक वे जो भारत के साथ जुड़कर रहना चाहते हैं, दूसरे वे, जो भारत और पाकिस्तान दोनों से अलग होकर आजादी चाहते हैं। तीसरे वे हैं जो पाकिस्तान के साथ जुड़ना चाहते हैं। केन्द्र सरकार के 5 अगस्त के फैसले का सबसे विपरीत असर उन लोगों पर पड़ा है जो भारत के साथ जुड़कर रहना चाहते हैं। उनकी ताकत अब अत्यधिक कमजोर पड़ गई है। क्योंकि जो लोग भारत की बात करते रहे हैं उन हजारों लोगों को जेल में डाल दिया गया है। जिसमें तीन मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला ऐसे हैं जो केन्द्र में भी मंत्री रहे हैं। महबूबा मुफ्ती भी गिरफ्तार हैं। कश्मीरियों के बीच आम चर्चा में यही कहा जाता है कि यही वे लोग हैं जो भारत की बहुत हिमायत करते थे उन्हें इसका बहुत अच्छा फल भारत सरकार ने दिया है। 


असल में आजादी मिलने के बाद जब राजा हरी सिंह ने भारत सरकार के साथ समझौता किया था तब रक्षा, विदेश तथा संचार से जुड़े मुद्दों को छोड़कर सभी मुद्दों को अपने पास रखा था। यही कारण है कि आम कश्मीरी मानते हैं कि जम्मू कश्मीर का वास्तव में भारत के साथ कभी भी विलय नहीं हुआ। दूसरी बात वहां रायसुमारी की चलती है। जिसको लेकर भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र संघ में वायदा किया था। कश्मीर में बड़ी संख्या में ऐसे लोग मौजूद हैं जो ये चाहते हैं कि कश्मीर के लोगों की राय जानने के लिये रायसुमारी कराई जानी चाहिये। जैसा कि तत्कालीन वाइसरॉय लार्ड माउन्ट बेटन ने वायदा किया था। केन्द्र सरकार के फैसले से आजादी की मांग करने वालों की ताकत कई गुना बढ़ गई है। जो लोग पाकिस्तान के साथ कश्मीर को जोड़ने की बात करते हैं उनकी ताकत पहले भी कभी ज्यादा नहीं थी। पाकिस्तान की आर्थिक बदतर हालत तथा हिंसा के माहौल के चलते कश्मीर के पाकिस्तान के साथ विलय चाहने वालों की संख्या लगातार कम होती जा रही है। 


केन्द्र सरकार दावा कर रही है कि 370 और 35ए खत्म होने के बाद जम्मू कश्मीर का विकास का रास्ता खुल गया है। परंतु गत चार महीने में अभी तक तमाम घोषणाओं के बावजूद कोई भी नई ओद्यौगिक या व्यापारिक इकाइयों पर काम शुरू नहीं हुआ है। होना भी संभव नहीं है। असुरक्षा और भय के वातावरण में व्यापार नहीं हो सकता। हाल ही में ये बात उद्योगपति राहुल बजाज ने कही है। 


देश भर में यह बताया जा रहा है कि कश्मीर के लोग कुछ भी कहते हों लेकिन जम्मू क्षेत्र के लोग बहुत खुश हैं जबकि स्थिति एकदम विपरीत है। होटल और टैक्सी का व्यापार करने वाले जम्मू के व्यापारियों का व्यापार दस से बीस प्रतिशत के बीच सिमटकर रह गया है। केवल जम्मू के व्यापारियों ने सेब और ड्राई फ्रूट खरीदने को लेकर तीन सौ करोड़ से अधिक का एडवांस कश्मीर में किसानों को दिया था। लेकिन ट्रांसपोटेशन के अभाव में कश्मीर से नहीं निकाला जा सका है। जम्मू कश्मीर में रहने वाले युवा सरकार के फैसले से सबसे ज्यादा चिंतित हैं क्योंकि अब सभी नौकरियों के लिए देश के सभी राज्यों के युवा प्रतियोगिता में बैठ सकेंगे अर्थात जम्मू कश्मीर के जितने युवाओं को पहले नौकरियां मिलती थी अब उन्हें नहीं मिलेंगी| 
उक्त परिस्थिति के बावजूद जम्मू कश्मीर को लेकर आम भारतीय चिंतित नहीं हैं। छुटपुट धरने प्रदर्शन और सोशल मीडिया कैंपेन के अलावा लाखों क्या हजारों लोगों के कार्यक्रम भी कहीं होते दिखलाई नहीं पड़े हैं, लोग कहते हैं, जब देश भर के मुख्यमंत्रियों ने अपने ही समकक्ष तीन मुख्यमंत्रियों की गिरफ्तारी का सड़कों पर विरोध नहीं किया तो हम साधारण लोग क्या कर सकते हैं| देश भर की इस असामान्य शिथिलता ने कश्मीरियों को अत्यधिक व्यथित किया है| 


मीडिया एकतरफा खबरें दिखा रहा है। जम्मू कश्मीर की विधानसभा पहले ही भंग कर दी गयी थी। नये चुनाव फिलहाल होते दिखलाई नहीं पड़ रहे हैं। अन्य राज्यों की विधानसभाओं तथा भारत की संसद के दोनों सदनों में जम्मू कश्मीर के लोगों की पीड़ा को आवाज मिलती दिखलाई नहीं पड़ रही है। जिससे एक बात तो साफ हो गई है कि जो लोग जम्मू कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बतलाते या मानते हैं उन्हें जम्मू कश्मीर के आम लोगों की दैनन्दिन जीवन से कोई लेना-देना नहीं है। अब कश्मीर घाटी में बर्फ पड़ने लगी है बर्फबारी के दिनों में वैसे ही जीवन असामान्य हो जाता है। वर्तमान स्थिति ने कश्मीरियों के जीवन को बद से बदतर बना दिया है। मोदी सरकार के 5 अगस्त के फैसले के बाद आम कश्मीरी अब भारत से बहुत दूर चला गया है। लेकिन केन्द्र सरकार ने जो प्रयोग कश्मीर में किया है उस प्रयोग का पूर्वोत्तर राज्यों एवं अन्य राज्यों में दोहराया जाना तय है। 


भाजपा ने राम मंदिर के मुद्दे को उठाकर संसद में दो सीटों से बढ़कर केंद्र सरकार में सरकार बना ली थी, नरेन्द्र मंत्री के मुख्यमंत्री रहते गुजरात में भी नरसंहार के बाद भाजपा लगातार सरकार बनाती रही है, बालाकोट और पुलवामा के बाद 2019 में फिर भाजपा ने सरकार बनाई है| भाजपा नेतृत्व की यह समझ बन गई है कि वह मुसलमान, कश्मीर और पाकिस्तान को लेकर जितना अधिक ध्रुवीकरण हिन्दू मुसलमानों के बीच में कर सकती है उतना अधिक चुनावी लाभ उसे होता है| विधानसभा चुनावों के पहले भाजपा ने जिस चुनावी लाभ की प्रत्याशा में 370 को हटाने का निर्णय लिया था वह महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव में उसे बहुत कम मिल सका है। इसके पहले मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पंजाब भाजपा के हाथ से निकल चुके हैं इसके बावजूद भाजपा के नेतृत्व के संघी सोच में कोई बदलाव दिखलाई नहीं पड़ता है| झारखण्ड एवं अन्य राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में लाभ लेने के लिये भाजपा फिर कोई मुसलमानों, कश्मीर और पाकिस्तान से जुड़ा मुद्दा उछालेगी लेकिन ऐसा लगता है काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ सकती| एक बात तय है भाजपा के इन प्रयोगों से भारत की साँझा विरासत-गंगा-जमुनी तहजीब को जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई करना बहुत कठिन होगा| 



डॉ. सुनीलम