अयोध्या विवाद मामले में फ़ैसला सुनाने वाले सुप्रीम कोर्ट के पांच जज हैं?


 


अयोध्या में राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुना दिया है.


फ़ैसले की संवेदनशीलता को देखते हुए देशभर में सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम किए गए और साथ ही उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में धारा 144 लगाई गई. राज्य के अलीगढ़ समेत कई ज़िलों में सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई.


इस विवादित मामले की सुप्रीम कोर्ट में 40 दिनों तक चली मैराथन सुनवाई 16 अक्तूबर को पूरी हुई थी.


पांच न्यायाधीशों की बेंच ने सुनवाई पूरी करने के बाद फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था. अब शनिवार को जब सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों ने अपना फ़ैसला सुना दिया है तो चलिए एक नज़र डालते हैं उन जजों पर जिन्होंने अयोध्या विवाद मामले पर सुनवाई की और यह ऐतिहासिक फ़ैसला दिया.



मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई


सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने अयोध्या मामले पर फ़ैसला देने वाली पांच जजों की संविधान पीठ की अध्यक्षता की. असम के निवासी गोगोई 17 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं लेकिन उससे पहले उन्हें कई महत्वपूर्ण मामलों में फ़ैसला सुनाना है. इनमें सबसे अहम अयोध्या भूमि विवाद था.


रंजन गोगोई ने अपने कार्यकाल के दौरान कई ऐतिहासिक फ़ैसले सुनाए हैं, जिसमें असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) जैसे मामले शामिल हैं. उन्होंने अभिनेता अमिताभ बच्चन से जुड़े पुनः कर निर्धारण मामले में भी अहम फ़ैसला सुनाया है.


एनआरसी पर फ़ैसलों के अलावा वह एनआरसी को लेकर काफ़ी मुखर भी रहे हैं. एक सेमिनार में उन्होंने इसे 'भविष्य का दस्तावेज' बताया था.


मई 2016, न्यायाधीश रंजन गोगोई और प्रफुल्ली सी. पंत की बेंच ने अमिताभ बच्चन से जुड़े बॉम्बे हाई कोर्ट के 2012 के आदेश को ख़ारिज कर दिया था. दरअसल बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने आदेश में अमिताभ बच्चन के एक लोकप्रिय टीवी शो से हो रही आय को लेकर दोबारा आयकर के मानकों को तय करने के इनकम टैक्स कमिश्नर के अधिकार को ख़ारिज कर दिया था. इस फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया.


साल 2018 में गोगोई ने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में छात्रसंध नेता कन्हैया कुमार पर हुए हमले में विशेष जांच टीम बनाने की याचिका को ख़ारिज कर दिया था. ये याचिका वरिष्ठ वक़ील कामिनी जैसवाल ने दायर की थी.


कन्हैया कुमार पर यह हमला 15 और 17 फ़रवरी 2016 को हुआ था जब उन्हें देशद्रोह के मामले में अदालत में लाया जा रहा था.


गोगोई छोटे-छोटे मसलों पर दायर होने वाली जनहित याचिकाओं को स्वीकार न करने के लिए भी जाने जाते हैं. कई मौकों पर उन्होंने याचिकाकर्ताओं पर ऐसी याचिकाएं दायर करने और अदालत का समय बर्बाद करने के लिए भारी जुर्माना भी लगाया है.


मुख्य न्यायाधीश तब विवादों में भी आए जब एक महिला के उन पर यौन शोषण का आरोप लगाया. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस आरोप को निराधार बताया



न्यायाधीश शरद अरविंद बोबड़े


सीजेआई रंजन गोगोई के बाद शरद अरविंद बोबड़े भारत के 47वें मुख्य न्यायाधीश होंगे. वह भी महत्वपूर्ण फ़ैसले देने के लिए जाने जाते हैं जिनमें हालिया दिल्ली में प्रदूषण का मामला भी शामिल है.


मध्य प्रदेश हाई कोर्ट से अप्रैल 2013 में उनकी सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नति हुई थी. अप्रैल 2021 में वे सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त होंगे.


वह निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित करने वाली नौ सदस्यीय संवैधानिक बेंच का भी हिस्सा थे. यह मसला साल 2017 में के.एस. पुट्टास्वामी बनाम केंद्र सरकार मामले में उठा था.


न्यायाधीश बोबड़े ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बताते हुए अपनी अलग राय रखी थी. उनका मानना था आधार कार्ड व्यक्ति की निजता को सीमित करता है. साथ ही यह भी माना कि आधार न होने के चलते किसी भी नागरिक को सरकारी सब्सिडी से वंचित नहीं किया जा सकता.


उन्होंने मुख्य न्यायाधीश टी.एस ठाकुर और न्यायाधीश अर्जन कुमार सीकरी के साथ पटाखों की बिक्री और भंडारण से जुड़ा फ़ैसला भी सुनाया था.


उनके पिता अरविंद बोबड़े महाराष्ट्र के पूर्व एडवोकेट जनरल रहे हैं. जस्टिस बोबड़े ने अपने करियर की शुरुआत बॉम्बे हाई कोर्ट से की थी. हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में उनका करियर 21 सालों का है.


साल 2000 में उन्हें बॉम्बे हाई कोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया और 2012 में वह मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किए गए.


उनके कुछ महत्वपूर्ण फ़ैसलों में जोगेंदर सिंह बनाम मध्य प्रदेश राज्य मामला शामिल है जिसमें तीन जजों की बेंच ने मौत की सजा को उम्र कैद में तब्दील करने का फ़ैसला सुनाया था.


इस मामले में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने अपराधी को एक महिला की हत्या के मामले में मौत की सजा का फ़ैसला सुनाया था. अपराधी ने उस दौरान हत्या की थी जब वह एक अन्य मामले में ज़मानत पर बाहर था.


न्यायाधीश बोबड़े ने कहा था कि इस मामले की परिस्थितियों को देखते हुए इसे 'दुर्लभतम' मामला नहीं माना जा सकता.



न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़


न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ के ऐतिहासिक फ़ैसलों में से एक वो है जिसमें उन्होंने अपने पिता के 1985 के आदेश को बदल दिया था.


वह सबसे लंबे समय तक सीजेआई रहने वाले न्यायाधीश वाईवी चंद्रचूड़ के बेटे हैं.


डीवाई चंद्रचूड़ के पिता ने अपने फ़ैसले में व्यभिचार क़ानून (एडल्ट्री) (धारा 497) को संवैधानिक रूप से वैध बताया था. लेकिन, उन्होंने अपने फ़ैसले में कहा कि धारा 497 वास्तव में महिलाओं के सम्मान और स्वाभिमान को आहत करती है.


उन्होंने कहा था कि महिलाओं को उनके पति की संपत्ति नहीं माना जा सकता और यह क़ानून उनकी सेक्सुअल आज़ादी का हनन करता है.


न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी और एलएलएम की डिग्री प्राप्त की. वह बॉम्बे हाई कोर्ट के न्यायाधीश भी रह चुके हैं और उसके बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश रहे हैं.


उन्हें साल 2016 में सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश बनाया गया था. उनका कार्यकाल 2024 तक है.



न्यायाधीश अशोक भूषण


उत्तर प्रदेश के जौनपुर से आने वाले न्यायाधीश अशोक भूषण को 2016 में सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त किया गया था. यहां उनका कार्यकाल 2021 तक है.


उन्हें साल 2001 में इलाहाबाद हाई कोर्ट का स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया था और बाद में वह 2015 में केरल हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने.


न्यायाधीश भूषण आधार कार्ड को पैन कार्ड से लिंक करने की अनिवार्यता पर आंशिक रोक लगाने का आदेश देने वाली बेंच का हिस्सा थे. इस बेंच में न्यायाधीश अर्जुन सीकरी भी शामिल थे.


केरल हाई कोर्ट में रहते हुए उनकी बेंच ने आदेश दिया था कि पुलिस को सूचना के अधिकार क़ानून के तहत एफ़आईआर की कॉपी उपलब्ध करानी होगी.



न्यायाधीश अब्दुल नज़ीर


न्यायाधीश अब्दुल नज़ीर फ़रवरी 2017 को कर्नाटक हाई कोर्ट से प्रमोट होकर सुप्रीम कोर्ट में आए. वह जनवरी 2023 तक यहां बने रहेंगे.


इससे पहले वह किसी भी हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश नहीं रहे हैं.


मंगलौर से आने वाले न्यायाधीश अब्दुल नज़ीर ने कर्नाटक हाई कोर्ट में क़रीब 20 सालों तक बतौर अधिवक्ता काम किया है और उन्हें 2003 में हाई कोर्ट का अतिरिक्त न्यायधीश नियुक्त किया गया था.


अयोध्या मामले की सुनवाई में न्यायाधीश नज़ीर ने ही कहा था कि इस मामले की सुनवाई एक बड़ी बेंच को करनी चाहिए.


वह न्यायाधीशों की उस बेंच का भी हिस्सा थे जिसने तीन तलाक़ की संवैधानिक वैधता के मामले पर फ़ैसला सुनाया था.


न्यायाधीश नज़ीर और तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर ने कहा था कि तीन तलाक़ को ख़त्म करने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट के पास नहीं बल्कि संसद के पास है . साथ ही सरकार को इस पर क़ानून बनाने का भी आदेश दिया था.