अधुरा कदम

पेट्रोलियम वितरण क्षेत्र को विनियंत्रित करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए सरकार ने पेट्रोल और डीजल की खुदरा बिक्री के बारे में हाल ही में महत्वपूर्ण घोषणा की। इसके तहत 250 करोड़ रुपये की हैसियत वाला निजी क्षेत्र का कोई भी कारोबारी पेट्रोल पंप खोल सकेगा। इससे पहले आवेदकों को इस क्षेत्र में कम से कम 2,000 करोड़ रुपये निवेश करने की प्रतिबद्धता जतानी होती थी। इस वजह से इस क्षेत्र में सीमित कारोबारी थे। अब संभव है कि ऐसी कंपनियां या समूह भी तेल विपणन क्षेत्र में निवेश करें जो रिफाइनिंग में निवेश नहीं करना चाहते। बड़ी संगठित खुदरा कारोबार करने वाली रिटेल चेन अपने स्टोर के हिस्से के रूप में पेट्रोल पंप स्थापित कर सकती हैं। अब तक ईंधन वितरण नेटवर्क पर सरकारी नियंत्रण वाली तेल विपणन कंपनियों का दबदबा रहा है। देश में निजी क्षेत्र द्वारा संचालित पेट्रोल पंपों की तादाद 7,000 से भी कम है यानी कुल सरकारी पंपों के 10 फीसदी से भी कम। निश्चित तौर पर उम्मीद यही है कि की इस क्षेत्र में और अधिक निजी निवेश आने से वितरण नेटवर्क मजबूत होगा, आपूर्ति में कारोबारी स्थायित्व आएगा, रोजगार में इजाफा होगा या वगैरह । उस दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह करें समझदारी भरा कदम है और इसका स्वागत । किया जाना चाहिए। वाली यह इसलिए भी स्वागत योग्य है क्योंकि में यह एक तरह से अन्य सरकारी क्षेत्रों को भी निजी क्षेत्र के साथ प्रतिस्पर्धा के लिए खोलता है। बहरहाल, एक अहम दृष्टिकोण से देखें तो इस सुधार के वांछित सकारात्मक प्रभाव शायद नहीं देखने को मिलें। आमतौर पर जब किसी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ती है तो कीमतों पर उसका असर होता है। कई क्षेत्रों में यदि निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने की इजाजत दी जाती है तो कीमतें कम होने का सीधा लाभ उपभोक्ता को मिलता है । इस कारोबार के साथ शायद ऐसा नहीं हो। यहां दिक्कत यह है कि मूल्य निर्धारण के क्षेत्र में सरकारी तेल कंपनियों का दबदबा है। पेट्रोल और डीजल की कीमतों को जहां आंशिक तौर पर विनियंत्रित किया गया है वहीं इनके मूल्य निर्धारण में राजनीतिक प्रभाव एक हद तक देखा जा सकता है। अहम चुनाव निकट होने पर मूल्य वृद्धि पर लगी रोक इसकी परिचायक है। ऐसे में पेट्रोल और डीजल की कीमतों के निर्धारण में पारदर्शिता का अभाव है। इसके कारण बाजार प्रतिस्पर्धा का सही ढंग से काम करना मुश्किल हो जाता है। उदाहरण के लिए यदि सरकारी खुदरा कंपनियों को राजनीतिक वजहों से मूल्य वृद्धि रोकने को कहा जाए तो निजी कंपनियों को नुकसान होगा। आदर्श स्थिति यह है कि निजी क्षेत्र की विपणन कंपनियों को विभिन्न रिफाइनरियों से ईंधन खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। इसमें सरकारी रिफाइनरियां भी शामिल हों। इसके अलावा पेट्रोलियम पदार्थों के लिए एक खुली और पारदर्शी मूल्य निर्धारण व्यवस्था स्थापित की जानी चाहिए ताकि पेट्रोलियम उत्पादों की कम कीमत का लाभ उपभोक्ता को मिले । यह सही है कि उपभोक्ता द्वारा चुकाए जाने वाले पैसे का एक बड़ा हिस्सा सरकार के खाते में जाता है। उक्त करों को कम करने का कोई औचित्य भी नहीं है। परंतु इससे यह सच नहीं बदलता कि लागत, मार्जिन और सेवा गुणवत्ता के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ने से उपभोक्ताओं को बेहतर सेवाएं भी मिलेंगी और कर ऊंचा रहने पर भी बेहतर कीमत तय हो सकेगी। अहम सवाल यह होगा कि क्या सरकार इसके बाद सरकारी नियंत्रण वाली रिफाइनरियों में भी मूल्य सुधार को अंजाम दे सकती है या नहीं।