वे पटरी पर क्यों सोये थे? 

वे पटरी पर क्यों सोये थे? 
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तो सुनिये ये है जवाब 
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कुछ 'भोले और भले' लोग पूछ रहे हैं कि वे मजदूर पटरी पर क्यों सो रहे थे? 
कमोबेश ऐसा पूछने वाले वे ही लोग हैं जो सत्ता की हर गलती में , नाकामी में किंतु परंतु के साथ जनता को ही दोषी ठहराते हैं। खास तौर पर गरीब और मजदूर को तो ये लोग मनुष्य भी नहीं समझते।


उन लोगों तक यह जवाब पहुंचा दीजिये-


1) वे न जाने कितने मील दूर से पैदल चले आ रहे होंगे। हम और आप उनकी थकान का अंदाज़ भी नहीं लगा सकते।


2) घंटों से कोई ट्रेन उस ट्रेक पर से नहीं गुजरी होगी इसलिए मौत आ जाएगी यह सोच भी न पाए होंगे।


3) यह भी वे जानते ही होंगे कि 45 दिन से ट्रेनें बंद हैं।


4) यदा कदा माल गाड़ियां चल रहीं हैं इसकी जानकारी  भी उन्हें न रही होगी।


5) जंगल के बीच से गुजरते ट्रेक पर नीचे जमीन पर सोने की बजाय ट्रेक पर सोना ज्यादा सुरक्षित लगा होगा।


जमीन पर जहरीले कीड़ों,सांप ,बिच्छू का डर रहा होगा।


6) ट्रेक पर काम करने वाले रेल कर्मचारी भी सुस्ताने को पटरियों पर सो जाते हैं। हर साल ऐसे हादसे होते हैं कि ये कर्मचारी ट्रेन से कट कर जान गंवा देते हैं।


7) क्या पता उन्हें लगा हो कि जरा सुस्ता लेते हैं। ट्रेन आएगी तो उसकी आवाज़ सुन कर उठ जायेंगे।


लेकिन अकल्पनीय थकान ने उन्हें गहरी नींद में सुला दिया हो और उठने का मौका ही न दिया हो।


फिर भी जिन्हें किसी न किसी बहाने सरकार के पक्ष में खड़े रहना ही है वे ऐसा कर ही सकते हैं।


वे क्या हैं यह बताना जरूरी नहीं। कम से कम मनुष्य तो नहीं हो सकते!😢


 @ DrRakesh Pathak