आनंद तेलतुंबड़े को हम सब एक अंबेडकरवादी चिंतक के रूप में जानते रहे हैं जो दलितों के मुद्दों को पुरजोर ढंग से उठाते हैं. उन्होंने तमाम किताबें लिखी हैं, तमाम लेख लिखे हैं. बेहद विद्वान आदमी हैं. उनकी पत्नी रमा डॉ अंबेडकर की पोती हैं. वे मैनेजमेंट के प्रोफेसर हैं.
यह भी दुनिया का विचित्र रहस्य है कि अब भारत में कोई आदमी एक ही साथ अंबेडकरवादी, मार्क्सवादी, गांधीवादी, समाजवादी, कांग्रेसी और माओवादी सब घोषित हो सकता है. पहले ऐसा सोशल मीडिया पर होता रहा और हम हंसते रहे, अब यही संस्थागत तरीके से कहा जा रहा है.
तेलतुंबड़े, गौतम नवलखा और सुधा भारद्वाज जैसे लोग हमारे समाज के बुद्धिजीवी हैं, मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं, हमेशा दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों की आवाज बनकर खड़े रहे हैं. कम से कम हम तो उन्हें इसी रूप में जानते रहे हैं.
अचानक भीमा कोरेगांव की घटना के बाद ऐसे कई लोगों को माओवादियों से जोड़ा गया. कुछ को जेल में डाला गया.
आज अंबेडकर जयंती है और खबर आई है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गौतम नवलखा और आनंद तेलतुंबड़े कोर्ट में सरेंडर करेंगे और उनकी गिरफ्तारी होगी.
आप चाहें तो कह सकते हैं सरकार की तरफ से देश आज बाबा साहेब अंबेडकर को सच्ची श्रद्धांजलि दे रहा है. इसके अलावा इस देश में किसी अन्य विचार को मान्यता नहीं है.
लेकिन मन में तो यह सवाल बना रहेगा कि आनंद तेलतुंबड़े जैसा शख्स क्या सच में जेल में डालने लायक है? क्या सच में वे माओवादियों से जुड़े हैं? क्या सच में वे हिंसक विचारधारा के हिमायती हैं? आपको क्या लगता है?
@krishan kant