उत्तर प्रदेश में चल रहे दमन चक्र के खिलाफ वामदल 30 दिसंबर को राज्यपाल के नाम ज्ञापन सौंपेंग


लखनऊ- 25 दिसंबर 2019, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी    (मार्क्सवादी) एवं भाकपा, माले- लिबरेशन के राज्य के पदाधिकारियों की एक आपात्कालीन बैठक वाराणसी में संपन्न हुयी। बैठक में उत्तर प्रदेश और देश के मौजूदा हालातों पर गंभीरता से चर्चा हुयी और तदनुसार भविष्य की कार्यवाहियों का निर्धारण किया गया। 
बैठक में नोट किया गया कि नागरिकता कानून और नागरिकता रजिस्टर पर प्रधानमंत्री एवं गृह मंत्री आज भी भ्रामक बयानबाजी कर रहे हैं। वे विपक्ष पर राजनीति करने का आरोप लगा रहे हैं जबकि वे दोनों सवालों पर वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं। पड़ौसी देशों में धार्मिक ही नहीं वैचारिक, नस्लीय और अन्य कई तरह का उत्पीड़न होता है उन आधारों पर भी लोग विस्थापित होते हैं। पर केन्द्र सरकार ने धर्म को आधार बना कर अन्य वजहों से विस्थापित लोगों को नागरिकता पाने से वंचित कर दिया। ऐसा एक समुदाय विशेष को संदेश देने के लिये किया गया ताकि बदले हालातों में भी वह भाजपा का वोट बैंक बना रहे है। उनकी इस स्वार्थपूर्ण राजनीति को अब सब समझ गये हैं और निहित स्वार्थों के लिये संविधान और लोकतन्त्र से छेड़छाड़ करने की कार्यवाहियों का सब विरोध कर रहे हैं।
इसी तरह आसाम में पक्ष विशेष को प्रताड़ित कर दूसरों को खुश कर अपना वोट बैंक बनाने के उद्देश्य से भाजपा सरकार ने एनआरसी लागू किया लेकिन 20 में 12 लाख हिन्दू नागरिकता रजिस्टर से बाहर रह गये। एनआरसी देश के किसी भी कोने में लागू किया जाये, आसाम जैसे ही नतीजे आयेंगे। क्योंकि रोजगार, खेती और व्यापार के लिये असंख्य लोग एक से दूसरी जगह जाकर बसते रहे हैं और उनके पास वहाँ का वाशिंदा होने के सबूत किसी के पास नहीं हैं। यद्यपि देश भर में सीएए और एनआरसी के खिलाफ हुये प्रबल विरोध के चलते प्रधानमंत्री और ग्रहमंत्री ने स्वर बदले हैं मगर उन्होने इन्हें रद्द करने की अभी तक घोषणा नहीं की है। इसके विपरीत वे इन सवालों पर विपक्ष के ऊपर लोगों को गुमराह करने का आरोप लगा कर विशुध्द राजनीति कर रहे हैं। 
वामपंथी दलों की इस बैठक में इस बात पर गहरी चिन्ता व्यक्त की गयी कि वामपंथी दलों के आह्वान पर 19 दिसंबर को सीएए के खिलाफ देश भर में हुये आंदोलन के बाद जिन राज्यों में भाजपा सरकारें हैं उन्होने उत्पीड़न की सारी सीमाएं लांघ दी हैं। उत्तर प्रदेश में तो स्थिति बहुत ही भयावह बनी हुयी है। वाराणसी में प्रशासन ने वामदलों के 56 कार्यकर्ताओं को संगीन दफाएँ लगा कर जेल भेज दिया। वामदलों के नेताओं को भी फँसाने की कोशिश की जारही है। जनसंगठनों के नेताओं से वेवजह पूछताछ की जारही है।  लखनऊ में सिविल सोसायटी के लोगों को न केवल गिरफ्तार किया गया है अपितु उन्हें हिरासत में बुरी तरह पीटा भी गया। प्रदेश में जहां भी आंदोलन में बड़े पैमाने पर लोग उतरे उन पर गोलियां बरसाई गईं जिससे प्रदेश भर में दर्जनों लोगों की जानें चली गईं। मुस्लिम अल्पसंख्यकों की बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियाँ की जारही हैं और उन पर संगीन धाराएं लगाई जारही हैं। सरकार के पास इस बात का कोई जबाव नहीं कि उसकी कर्फ़्यू जैसी पाबंदियों और लोकतान्त्रिक गतिविधियों पर आलोकतांत्रिक रोक लगाने के बाद कैसे हिंसा होगयी। अब बौखलाई सरकार हर तरह से लोकतान्त्रिक आवाज को दबा रही है। शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न की वारदातों ने इमरजेंसी के दमन को पीछे छोड़ दिया है। 
वामदलों ने देश भर की लोकतान्त्रिक ताकतों से अपील की कि वे उत्तर प्रदेश में चल रहे इस दमनचक्र के खिलाफ राष्ट्र भर में आवाज उठा कर एकजुटता का इजहार करें। 
वामदलों ने निर्णय लिया कि 30 दिसंबर को इस दमन चक्र के खिलाफ और वामपंथी कार्यकर्ताओं सहित सभी निर्दोष गिरफ्तार लोगों की बिना शर्त रिहाई के लिये राज्यपाल के नाम संबोधित ज्ञापन जिला, तहसील तथा ब्लाक के अधिकारियों को सौंपें। चूंकि प्रशासन ने समस्त जगह धारा 144 लगाई हुयी है और अनेक जगह अशांत वातावरण भी है, अतएव शांतिपूर्ण तरीके से ज्ञापन ही दिये जायें। 
वामदलों ने 8 जनवरी को महंगाई, बेरोजगारी, खेतिहर और औद्योगिक श्रमिकों के अधिकारों के हनन, आर्थिक मंदी से निपटने में सरकार की असफलता तथा व्यापक भ्रष्टाचार जैसे सवालों पर होने वाली राष्ट्रव्यापी हड़ताल को समर्थन देने का निर्णय लिया है। 
हड़ताल के मुद्दों और सीएए और एनआरसी पर सरकार की स्वार्थपूर्ण व संविधान विरोधी नीति को उजागर करने को 1 से 7 जनवरी तक जनसंपर्क अभियान चलाने का निर्णय भी वामदलों ने लिया है। 
वामदलों की इस बैठक में भाकपा के राज्य सचिव डा॰ गिरीश, सहसचिव का॰ अरविंदराज स्वरूप, भाकपा(मा॰) के राज्य सचिव डा॰ हीरालाल यादव एवं भाकपा- माले के राज्य सचिव सुधाकर यादव के अतिरिक्त कई प्रमुख नेता उपस्थित थे।